अनूप जी, जीवन की अनेकों सुन्दर भावनाओं में रोना भी एक है। जैसे बारिश के बाद सब कुछ धुला-धुला और सुन्दर हो जाता है, वैसे ही कभी-कभी जीवन में रोने के बाद सब कुछ ह्ल्का होकर निखर जाता है। कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं।
अगर न होता दुःख जीवन मॆं तो सुख का अहसास न होता। फूल फूल ही रह जाते, कांटो का कुछ आभास न होता।
और ये पंक्ति तो शायद 'कामायनी' की है -
दुख की पिछली रजनि बीच विकसता सुख का नवल प्रभात।
और रोने पर लङकियों का ही आधिपत्य नहीं है; ये हमें आपकी ही एक पोस्ट से पता चला था।
लोग कहते हैं कि हंसने से मन हल्का और आंखें खूबसूरत हो जाती हैं। फिर भी योजना बना के हंसने की बात समझ नहीं आती । कोई शायर कहता है:- अपनी खुशी के साथ मेरा गम भी निबाह दो, इतना हंसो कि आंख से आसूं छलक पड़ें।
4 comments:
ऊपर वाली टिप्पणी सं.एक हमारी है.
अनूप शुक्ला
हँसते हँसते रो पडो
तो क्या बात हुई
रोते रोते भी अगर
मुस्कुराया
तो कोई बात बने
मुद्दतें हो गई कि तन्हा
कभी बैठे हों
आओ आज खुद को
खुद से मिलाया जाय
तो कोई बात बने
प्रत्यक्षा
अनूप जी,
जीवन की अनेकों सुन्दर भावनाओं में रोना भी एक है। जैसे बारिश के बाद सब कुछ धुला-धुला और सुन्दर हो जाता है, वैसे ही कभी-कभी जीवन में रोने के बाद सब कुछ ह्ल्का होकर निखर जाता है।
कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं।
अगर न होता दुःख जीवन मॆं
तो सुख का अहसास न होता।
फूल फूल ही रह जाते,
कांटो का कुछ आभास न होता।
और ये पंक्ति तो शायद 'कामायनी' की है -
दुख की पिछली रजनि बीच
विकसता सुख का नवल प्रभात।
और रोने पर लङकियों का ही आधिपत्य नहीं है; ये हमें आपकी ही एक पोस्ट से पता चला था।
प्रत्यक्षा जी आपकी बात बहुत अच्छी लगी।
लोग कहते हैं कि हंसने से मन हल्का और
आंखें खूबसूरत हो जाती हैं। फिर भी योजना
बना के हंसने की बात समझ नहीं आती ।
कोई शायर कहता है:-
अपनी खुशी के साथ मेरा गम भी निबाह दो,
इतना हंसो कि आंख से आसूं छलक पड़ें।
हंसते-मुस्कराते रहने की मंगलकामनायें।
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