आखिर सर्दियां आ ही गईं। इस बार मौसम नये नये रंग दिखा रहा है। नवम्बर में भी कभी कभी गर्मी का सा अहसास हो रहा था। पतझड़ भी कितनी देर से आया इस बार, और कुछ रंग-बिरंगे पत्ते तो अभी भी पेड़ों पर बाकी हैं। और आज सुबह उठ कर खिड़की से बाहर देखा तो बर्फ पड़ रही थी। तापमान देखा तो 25 डिग्री फारेन्हाइट; शून्य से भी कुछ डिग्री नीचे। हां इसे भारी हिम्पात तो नहीं कह सकते, पर बर्फ तो है ही। नया-नया सब कुछ कितना अच्छा लगता है। सुबह कान्ती को स्कूल छोड़ने गये तो सब कुछ एक हल्की सी धुंध में ढका सा था। बर्फ रुई के सफेद फाहों सी उड़ती हुई विन्ड स्क्रीन पर आकर टकरा रही थी और एक पल में ही पिघल कर बही जा रही थी। जगजीत सिंह की गज़लें सुनते हुये बाहर के मौसम का मजा लेना कितना सुखद लग रहा था। मौसम की ये पहली बर्फ इतनी अच्छी लग रही है, पर कुछ ही दिन में इस से ऊब जायेंगे। जब चारों तरफ बस सफेदी का साम्राज्य सा छा जायेगा, तो यही बर्फ दुश्मन सी लगेगी। और हम फिर से बेसब्री से इंतज़ार शुरु कर देंगे- गर्मियों का।
यही तो है जीवन- जो पास नहीं है हमेशा मन वही मांगता है, और जो पास है उस की कोई कद्र नहीं।
एक तस्वीर पिछले साल की बर्फ से
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