शब्द ही हैं मेरे आईना मेरा;
ढूंढती फिरती हूं कबसे,
मैं खुद ही का पता!
खुद के बारे में कुछ कहना, अपना परिचय देनाकुछ कठिन काम सा लगता है। लगता है जैसे एक जी हुयी कहानी को फिर से कहना या उङते फिरते तितली से शब्दों को तस्वीर बन जाने की सजा देना।
वैसे सीधे साधे शब्दों में कहें, तो कुछ मुश्किल भी नहीं है। तो शुरु करते हैं, नाम-सभी का एक होता है, मां पापा का दिया हुआ, पर पापा कहते हैं हमने अपना नाम खुद रखा था 'सारिका' जिसका अर्थ होता है 'मैना'। बाकी तो सब सोनू ही कहकर बुलाते हैं। अगस्त १९७६ को इस दुनिया में आये, स्थान था फतेहगढ (फर्रूखाबाद) [उत्तर प्रदेश]। शिक्षा-दीक्षा हुयी पहले फतेहगढ में और बाद में बरेली से इतिहास में स्नातकोत्तर किया। पढाई में हमेशा औसत ही रहे। पर भावुकता ने कलम से दोस्ती करा दी और बस भावनाओं को लव्ज़ों में ढालकर नज़्मों का रूप देते रहे। लिखा बहुत कुछ पर जाने क्यों कभी कुछ सम्भाल कर नहीं रख पाये।
पढाई खत्म हुयी तो फिर आती है विवाह की बारी- जैसे हर लङकी का दूसरा जन्म होता है, हमारे साथ भी ऎसे ही कुछ हुआ। इसे आध्यात्मिक विवाह कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। हमारे आध्यात्मिक गुरु श्री पी. राजगोपालाचारी जी ने हमें चुना दक्षिण (हैदराबाद) के वेंकट सोनाथी के लिये, और ये चयन धर्म, जाति और भाषा के परे था। २४ जुलाई२००० को बिना किसी सामाजिक रीति-रिवाज के (बिना सात फेरों के) एक आध्यात्मिक समारोह में हम अपने जीवन-साथी के साथ नव-जीवन की ओर अग्रसर हो गये। विवाह ने हमें उत्तर से दक्षिण ही नहीं पहुंचाया बल्कि सात समुन्दर पार भी पहुंचा दिया, और साथ में बना दिया एक नन्ही सी कली की माँ!
तो है तो ये सीधी-सरल सी कहानी जो किसी के भी जीवन से मिलती-जुलती हो सकती है। मगर हम खुद के बारे में जब कभी गौर से सोंचते हैं तो खुद को एक बेटी, बहन, पत्नी और माँ से कहीं अलग हटकर एक एक अनोखी लङकी के रूप में पाते हैं जो स्वच्छन्द है, आजाद है जो किन्ही बन्धनों को नहीं मानती, जिसका बचपन अभी भी उसके साथ है,जो चिर यौवना है पर जीवन सन्ध्या को निकट से जानने की चरम उत्कण्ठा रखती है। एक ऎसी लङकी जो कभी तो 'अमृता प्रीतम' की 'अनीता' सी लगती है कभी 'शिवानी' की 'कृष्ण कली'। जिसका मन कभी बचपन की कुलांचे भरता है तो अचानक उसे प्रौढ गम्भीरता घेर लेती है। जिसे कभी जीवन की जटिलतायें भी विचलित नहीं कर पाती, पर कभी किसी का छोटा सा दर्द रुला जाता है......और ये फेहरिस्त बहुत लम्बी, बस चलती ही जायेगी। तो इसे बस यहीं विराम देते हैं बाद में फेर बदल तो होते ही रहेंगे।
10 comments:
navjat shishu sune aangam main apni kilkariyon se khushiyon kee kalikaye bikher ker harshaye man ko 'Triveni' arthat adhyatmik,samajik,sahityik sangam kee ek aisee nirali anubhuti karate huye abhivyakti kee or sahaj he unmukh kar deti hain, janha bhavnaye anchahe hee sabdon ke jal main ulajh ker pukar uthati hain.
Sarika ho ya sonu
amrita kee anita,
shivani kee krishna kali
hai adhyatm kee deo kali
unjuli bhar-bhar
bikhere sahbdanjali
jaihind
gammbindia
स्वागत है हिंदी ब्लागजगत में।
अच्छा किया जो इस लड़की ने अब कहने की ठानी है. ब्लॉग जगत में आपकी अनकही बातों के साथ आपका हार्दिक स्वागत है.
वाह! वाह! स्वागत है हिन्दी चिट्ठाकारों के परिवार में, आशा है अब इस लड़की की लेखनी रुकेगी नही, हम तो है ही सुनने वाले, हमारे साथ साथ, ज़माना भी सुनेगा और देखेगा,आपकी लेखनी का कमाल.
आपकी कवितायें दिल के बहुत करीब है, एकदम सीधा वार करती है, और गहरा घाव भी. मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी...मै अपने ब्लाग पर आपकी कविता पर विस्तृत लेख लिखने की आज्ञा चाहूँगा. आपका परिचय भी काफी रोचक लगा. आपसे निवेदन है कि आप अपना ब्लाग, हमारे ब्लाग एग्रीगेटर "चिट्टा विश्व" पर रजिस्टर करवा ले, ताकि बहुत से दूसरे पाठक आपके ब्लाग पर पहुँच सके.
आपकी नयी कविताओं का इन्तजार रहेगा.
you are a find for me today.
havent read all of what you have written. BUt i am very sure that i am going to do.
Its been long that, i fond something genuine, dil se nikali baat. and most of all i liked your style or writing...so very simple yet so elegent.
Sarika ji,
Parichay main kaviyatri khojne ke bajay Kavitaon main Parichay khojane ki koshish ki. aur phir apna kavitaon se banaya hua aapka chehara, aapke khud ke diye parichay se milaya to aapke parichay main ullekhit alhad,shokh ladki ko kahi khoj nahi paya.
to apni murti puri kijiye.
ek alhad,chanchal,shokh kavita ki prarthna hai.
Aap Ka Hi
Abhishek Garg
नमस्कार बन्धु आपका परिचय बडा ही अच्छा और रोचक है
वाह वाह क्या ब्लोग है हमे भि जरा लीख्नना सिखा दीजीये
बहुत कुछ मुझ-सी हो तुम.
पर....मेरी शादी के बाद पैदा हुई हो ?
हा हा हा मेरे बेते टीटू यानि अभिषेक से भी छोटी.पर शब्दों में स्पष्ट दिल्हाई देती तुम्हारी इमानदारी बहुत अच्छी लगी.
प्यार
aaj jaae fir kaise yahaa chli aai aur dekho fir mil rhi hun........sarika se
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