Friday, July 08, 2005

एक गज़ल

तेरी एक नज़र ने आज मुझे इस तरह सजाया है।
मिरे आगे आज तो कुछ चांद भी शरमाया है।

मांग मेरी मोती , सितारों से भर गई।
माथे पे मेरे आज महताब जगमागाया है।

लम्स ने तेरे मुझ पे जादू सा कर दिया।
हर शख्स मेरी जानिब तक के मुस्कुराया है।

एक खुनक सी बिखर गई है मौसम में ।
हवाओं ने फिर से कोई नया गीत गुनगुनाया है।

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तेरी कमगोई से पहले ही थे गिले बहुत,
चुप रह के सितम तुमने कुछ और भी ढाया है।

नम हो गईं महफिल में सभी की आंखे
हाले दिल उसने कुछ इस तरह सुनाया है।

1 comment:

अनूप भार्गव said...

सारिका जी:
सुन्दर गज़ल है , विशेष कर यह शेर :

>नम हो गईं महफिल में सभी की आंखे
>हाले दिल उसने कुछ इस तरह सुनाया है।

एक शेर जोड़नें की कोशिश की है :

वो पलक मूँद कर हौले से मुस्कुराये हैं
उन के तसव्वुर में जानें कौन आया है ।

अनूप