Wednesday, July 13, 2005

मन तितली

तितली बन मन पंख पसारे।
बिखरे रंग धनक के सारे।

शोख हवा से लेकर खुशबू;
लिख दी पाती नाम तुम्हारे।

हुई आज मैं अपने पिय की;
टंक गये आंचल चांद-सितारे।

बाबुल अंगना छूटा अब तो;
चली आज मैं पिया के द्वारे।

प्यार की पहली बारिश में ही;
डूब गया मन संग तुम्हारे।

भर नज़रों से तुमने देखा,
झुक गईं अंखियाँ लाज के मारे।

अम्बर से कुछ स्याही लेकर;
लिक्खा खुद को नाम तुम्हारे।

तुमसे मिलना बातें करना;
पल में बीते लम्हे सारे।

संग तुम्हारे निकले घर से;
बढ के कोई नज़र उतारे।

8 comments:

अनूप भार्गव said...

ये शेर बहुत अच्छा लगा ..

अम्बर से कुछ स्याही लेकर;
लिक्खा खुद को नाम तुम्हारे।

अनूप

संजय विद्रोही ( Dr. Sanjay Sharma) said...

बाबुल अंगना .... वाले शेर के सम्मान में अपना एक शेर दे रहा हूँ, ससम्मान-
बिटिया जब घर से चली कर के पीले हाथ,
बाबुल के घर का गया सारा रंग बिदेस.

गजल सुन्दर है....

संजय

Anshul said...

Sarika,
I just came to know about your blog and must say that you are awesome. Apologize that I cannot write in Hindi (i feel i might require some software)

Anyways, here is one from my end -
"kal woh kehte the utha jaata nahin,
aaj duniya se chale jaane ki taakat aa gayi"

Keep writing...

Pratyaksha said...

संग तुम्हारे निकले घर से;
बढ के कोई नज़र उतारे।

ये मुझे बहुत पसन्द आया..सारिका..
ऐसे ही लिखते रहें...
प्रत्यक्षा

Anonymous said...

New jersey mein baitha hua main jaane kahaan se hindi ke webpages/blogs par pahunch gaya. Kabhi sapne mein bhi naheen socha tha is internet par log (people) hindi mein pehle se likh rahe hai aur itna badhiya!

अनूप भार्गव said...

वो लमहे मीठे लगते हैं
जो भी तेरे सँग गुज़ारे ।

Pratik Pandey said...

हांलाकि कविताएं मुझे बहुत उबाऊ लगती हैं और मैं कोई भी कविता पूरी नहीं पढ़ पाता हूं। लेकिन आपकी कविताएं सहज प्रवाहमय हैं, एक बार पढ़ना शुरू करो तो खत्‍म होने तक उन्‍हें छोड़ा नहीं जा सकता।

Ravi said...

i love your poems !
keep it up!