Wednesday, November 30, 2005

ख्वाब

कुछ न कहो बस ख्वाब का क्या है
ख्वाब सुनहरे होते हैं।
कितने सारे पागल प्रेमी,
मिल के इन्हें सजोंते हैं।

कांच के नाजुक ताजमहल से ,
रखना इन्हें सम्भल के तुम;
एक ठेस भी गर लग जाय
किरचें दिल में चुभोते हैं।

किसी को मंज़िल तक पहुंचायें
किसी के राह में बिखर गये,
कहीं-कहीं पर धूमिल-धूमिल
कहीं रुपहले होते हैं।

ख्वाब हैं आखिर टूट जायं तो,
नये ख्वाब तुम बुन लेना;
माला गर टूट जाय तो
मोती नये पिरोते हैं।

1 comment:

Pratyaksha said...

हर दिन हर पल
बडे जतन से
सींच सींच कर
प्यार लगन से
हमने भी कुछ
बोये सपने
जाने कब वो
पेड उगेगा
कब सपनों का
फूल झडेगा