Tuesday, November 01, 2005

एक दिया....




राह जब तम से घिरें सब;
और न सूझे हांथ भी जब;
निराशा से तुम घिर न जाना।
एक दिया तब तुम जलाना।

अंधियारा कितना प्रबल हो,
हृदय कितना ही विकल हो,
प्रात की पहली किरण से,
रात को है ढल ही जाना।

भावना के सुर सजाकर,
कृष्ण सी बंसी बजाकर,
प्रीत भर दे जो हृदयों में,
गीत ऎसा गुनगुनाना।

सभी को दीपावली की शुभकामनायें!!!

4 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

sundar likha hai Sarika...

Pratyaksha said...

अंधियारा कितना प्रबल हो,
हृदय कितना ही विकल हो,
प्रात की पहली किरण से,
रात को है ढल ही जाना।

बहुत सही लिखा है
प्रत्यक्षा

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया लिखा।'हृदयों' को 'हृदय' करने से शायद प्रवाह अच्छा हो।


भावना के सुर सजाकर,
कृष्ण सी बंसी बजाकर,
प्रीत भर दे जो हृदय में,
गीत ऎसा गुनगुनाना।

Tarun said...

Bahut hi Achha likha hai Saarika..all 3 para are very nice and show the optimism.

Ek baat प्रात hota hai ya प्रात:
mere khayal se pratah hota hai (baad wala)...confusion door karne ke liye "Bhor" bhi use kar sakte hain....it's ur call.

-Tarun