Sunday, March 12, 2017

जाती हुयी ठण्ड

आज शिवरात्रि थी, किचेन से भुने आलू और मूंगफली की खुशबू आ रही थी| ठंड बस जाते जाते रुक सी गयी थी| आँगन में ढेर साड़ी धूप फैली हुई थी और वही कोने में पड़ी एक आराम कुर्सी पर साकेत अधलेटा सा पड़ा था| उसने सीधी धूप से बचने के लिए चेहरे पर अखबार रखा हुआ था| उसके हाथ में एक कागज़ था जिसे देर तक पढ़ने के बाद ही वो आँख बंद करके धूप सेंकने लगा था| तभी साकेत की माँ ने किचेन से आवाज़ दी, बेटा अन्दर जाके आराम से सो जा| फिर तुझे कल जाने के लिए पैकिंग भी करनी है| साकेत माँ की बात सुनकर अंदर अपने कमरे में आ गया| बिस्तर पर लेटकर वो फिर से अपना अपॉइंटमेंटलैटर देखने लगा| उसे याद आने लगा ऐसी ही जाती हुई ठण्ड का वो दिन था| साकेत तब नौवी क्लास में था| पढ़ने में वो शुरू से अच्छा था, पर इधर कुछ दिनों से उसका दिमाग पढाई से उचटता जा रहा था| कारण था उसी के क्लास में पढ़ने वाली शिवानी| वैसे तो उसके क्लास में लडके और लड़कियाँ आपस में ज्यादा बात नहीं करते थे, पर कुछ दिनों पहले शिवानी ने क्लास में उससे, उसके नोट्स मांगे थे और बस उसके बाद से साकेत के दोस्तों को उसे चिढाने का मौका मिल गया था| और फिर वो उम्र भी ऐसी थी जब शरीर के साथ कितने मानसिक बदलाव भी आ रहे थे| उसके दोस्त उसे बार बार कहते कि शिवानी उस में इंटरेस्टेड है तो उसे भी कोई कदम उठाना चाहिये| साकेत को भी यही लगता कि वो शिवानी को चाहने लगा है| किताबों में भी उसे बस शिवानी ही दिखायी देती| और फिर दोस्तों के बार-बार उकसाने और अपने दिल के हांथों मजबूर होकर उसने शिवानी को ख़त लिखने का फैसला कर लिया| ढेर सारे कागज़ बर्बाद करने के बाद आखिर उसने प्यार का वो पहला ख़त लिख ही लिया| वो आराम से बिस्तर पर लेट कर उस लैटर को पढ़ने लगा| उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी, उसे अहसास ही नहीं हुआ की रात के १२ बज चुके थे इतनी देर तक उसके कमरे की लाइट जली देख कर उसके पापा कमरे में आये, और बोले क्या बात है भई आज आधी रात तक पढाई हो रही है, कल कुछ टेस्ट है क्या| अब साकेत को काटो तो खून नहीं| वो क्या जवाब देता| उसने लैटर जल्दी से अपने बैड के पीछे डाल दिया और संभल कर बैठ गया| और बोला कुछ नहीं पापा बस ऐसे ही पढाई कर रहा था| पर पापा की नज़रों से कुछ छिप सकता था क्या| झुक कर उन्होंने जमीन पर पड़े हुए पन्नो को उठाया और देखने लगे| प्रिय शिवानी, प्यारी शिवानी से ज्यादा कुछ उन पर नहीं लिखा था पर पापा समझ गए कि चक्कर क्या है| साकेत की साँसे अटकी हुयी थीं, उसे समझ नहीं आ रहा था की पापा का क्या रिएक्शन होगा| उसकी पापा से कोई ज्यादा दोस्ती नहीं थी वो तो माँ के ही ज्यादा करीब था| उसे लग रहा था कि आज तो पिटाई होनी ही होनी है| पर ऐसा कुछ नहीं हुआ| पापा आराम से आकर उसके बैड के सामने की कुर्सी पर बैठ गए और उन्होंने गहरी आवाज़ में कहना शुरू किया| बेटा इस उम्र में ऐसा होता है, ये आकर्षण पूरी तरह स्वाभाविक है| इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। मैं तुम्हें डाँट नहीं रहा हूँ बस तुम्हारे साथ अपना अनुभव बाँट रहा हूँ । मैं जब तुम्हारी उम्र का था तो मेरे साथ भी ऐसा हुआ था| मैं भी एक लड़की के प्यार में पागल हो गया था, पढाई लिखाई सब भूल बैठा था| फिर तुम्हारे दादा जी को इसका पता चल गया और उन्होंने मेरी वो पिटाई की क्या बताऊँ| 9th में मैं ग्रेस मार्क्स से पास होके किसी तरह 10th में पहुंचा| मेरे सब पुराने दोस्त बदल गए| मैं हींन भावना से भर गया। फिर दसवीं में मेरे साइंस के टीचर बहुत ही समझदार थे| वो टीन एज की सायक्लोजी को समझते थे| उनकी बातों का मुझ पर गहरा असर पड़ा| और मैंने वापस पढाई में मन लगाना शुरू कर दिया| उनकी बातों से ही मुझे समझ में आया कि प्यार में कोई बुराई नहीं है, बस हर आकर्षण को प्यार नहीं समझ लेना चाहिए| और अब एक उम्र जीकर मुझे ये समझ में आया है की १४ -१५ की उम्र में हमें प्यार के मायने भी नहीं पता होते हैं| बस इससे ज्यादा कुछ नहीं है मेरे पास कहने को| बस फिर पापा उठे उसे हलके से गले लगाया और कमरे से चले गए| उस दिन के बाद पापा ने इस बात का कोई जिक्र नहीं किया| बहुत दिनों तक शिवानी को लिखा वो लैटर साकेत के बैग में रखा रहा, फिर उसने उसे उठाकर अलमारी के कोने में डाल दिया| उस दिन के पापा के इतने शांत तरीके से समझाने के बाद साकेत को समझ में आ गया कि वो शिवानी से सच में प्यार नहीं करता बस दोस्तों के उकसाने पर कूल दिखने के चक्कर में वो ये सब करने चला था| और बस फिर साल गुज़रते रहे और वो अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता गया और आज उसके हाँथ में उसकी पहली नौकरी का अपॉइंटमेंट लैटर था| साकेत सोंच रहा था कि उस दिन अगर उसके पापा ने उसे ठीक से समझाने के बजाय डाँटा या मारा होता तो क्या वो आज वो बन पाया होता, जो वो आज बन पाया है। शायद वो कहीं भटक कर अपनी राह खो चुका होता। पुरानी बातें याद करके उसके चेहरे पर फिर से एक मुस्कान आ गयी। जाती हुई ठण्ड का मौसम उसे सबसे ज़्यादा पसंद था। और इस साल तो ये मौसम उसके लिए एक अच्छी सौग़ात लेकर आया था। 

2 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 14 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी said...

अच्छी कहानी ।