फिर एक वादी में हम गए
थे जर्द फूल खिले हुए
चल रहे थे दोनों हम
हाथ में हाथ लिए हुए
फिर वहीं किसी एक मोड़ पे
तुम हाथ छोड़ के चल दिये
मैं खड़ी रही उस मोड़ पे
तेरे लौटने की आस में
कि नींद मेरी खुल गयी
तुम थे यहीं मेरे पास में
वो एक बुरा बस ख़्वाब था
मेरे ख़्वाबों की ताबीर तुम
मेरे पास हो तो गिला है क्या
मेरी ज़िंदगी एक ख़्वाब से
कहीं और ज़्यादा हसीन है।
No comments:
Post a Comment