Tuesday, February 28, 2017

लाल धागा

लाल धागा

शारदा जी ने रोज़ की तरह ही अपने जूते बाहर बने शू रैक से लेने के लिए दरवाज़ा खोला| रोज़ सुबह ही नियम से वो टहलने जातीं थीं| जाते समय वो अपनी दोनों पोतियों निषा और दिशा को बस स्टाप पर स्कूल की बस में चढाती और फिर कालोनी के पार्क में वाक् करतीं| अपनी डायबिटीज़ को कन्द्रोल में रखने के लिए वो अपना नियम बहुत कम ही तोड़तीं थीं| आज जब उन्होंने अपने वाकिंग शूज़ उठाये तो उन पर एक लाल धागा रखा हुआ था| वो धागा बीच बीच में पीला भी था, शारदा जी को ये पूजा में बाँधने वाले कलावे के धागे के जैसा लगा| उस वक्त उन्होंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और जल्दी से जूते उठाकर उन्हें पहनकर वाक् पर जाने के लिए तैयार हो गयीं| इस बीच निषा और दिशा भी तैयार होकर आ गयीं| निशा ने जब अपने जूते शू रैक पर से उठाये तो उसमें भी एक लाल धागे का टुकड़ा था| उसने पूछा, “ये धागा कैसा है दादी?” शारदा जी ने कहा पता नहीं बेटा तुम जल्दी से जूते पहनो, नहीं तो बस छूट जायेगी| दोनों ने जल्दी से जूते पहने और अपने मम्मी पापा को बाय करते हुए दादी के साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ गयीं|

रोज़ की ही तरह दोनों की बातें चल रहीं थीं| दिशा ने कहा, “दादी आपको पता है हमारे पड़ोस वाले फ़्लैट में नए लोग रहने आ गए हैं| और मैंने वहां एक छोटी सी लड़की को भी देखा है| हम लोगों को खेलने के लिए एक नयी दोस्त मिलने वाली है|”

शारदा जी ने सोंचा चलो अच्छा है बहुत दिनों से वो फ़्लैट खाली पड़ा था, किसी के आकर रहने से रौनक हो जाएगी| उन्होंने दोनों बच्चों के बस में चढ़ाया और वाक् करने लगीं| पैंसठ साल की शारदा जी अपने बेटे पंकज और बहू प्रिया तथा दोनों पोतियों निशा और दिशा के साथ मुंबई महानगर के एक अपार्टमेंट में रहतीं थीं| तीन साल पहले उनके पति का स्वर्गवास हो चुका था| कुछ महीनों तक बहुत उदास रहने के बाद उन्होंने जीवन की सच्चाई को स्वीकार कर लिया था| वो अपने पति राकेश को याद तो करतीं थीं, पर जिंदगी को जीना उन्होंने सीख लिया था| वो अपने आप को घर के कामों में उलझाये रखतीं या कोई किताब पढ़ती रहतीं| पढने का उन्हें हमेशा से शौक था और अब इस उम्र में उनके पास वक्त ही वक्त था अपने इस शौक को पूरा करने का| वो आधुनिक ख्यालात की, वक्त के साथ चलने वाली महिला थीं| सुबह की सैर उनकी सेहत के साथ-साथ उनके मन को भी तारो-ताज़ा रखती थी| आज भी एक घंटा टहलने के बाद वो पार्क में बनी बेंच पर बैठ गयीं| उन्होंने जैसे ही बैंच पर हाँथ रखा उनका हाथ किसी नुकीली चीज़ पर पड़ा और उनका हाँथ कट गया, खून की कुछ बूंदे छलक कर बैंच पर गिर गयीं| उन्होंने देखा कि लोहे की बैंच थोड़ी सी कटी हुयी थी और उसी पर उनका हाथ पड़ गया था| खून देखकर उनका मन ख़राब हो गया| वो घर की तरफ चल पड़ीं| जब वे घर पहुंची तो पंकज और प्रिया आफिस जाने के लिए तैयार थे| उन्हें विदा करने के बाद उन्होंने एक बैंड एड अपने हाथ पर लगा ली और पता नहीं क्यों उन्हें उस लाल धागे का ख्याल आ गया| उन्हें समझ नहीं आया की वो धागा क्या था और कहाँ से आया था|

दोपहर में वो आराम करने के लिए लेटी हीं थीं की निशा की टीचर का फोन आ गया कि निशा के पैर में खेलते हुए चोट लग गयी है| कोई चिंता की बात नहीं है, बस उन्हें इन्फार्म करने के लिए फोन किया है| शारदा जी का मन नहीं माना और कैब बुलाकर वो स्कूल के लिए रवाना हो गयीं| स्कूल पहुंचकर उन्होंने देखा की सचमें ज्यादा चोट नहीं थी, बस पत्थर पर गिरने से पैर थोडा सा कट गया था और खून देखकर निशा डर गयी थी| दादी को स्कूल आया देखकर दिशा भी उनके पास आ गयी| दोनों ही दादी के साथ घर जाने की जिद करने लगे| प्रिंसिपल ने शारदा जी के कहने पर दोनों को घर जाने की इजाजद दे दी| निशा और दिशा को लेकर जब शारदा जी घर पहुंची तो कारीडोर में फिर से तीन चार लाल धागे बिखरे हुए थे| पता नहीं क्यों शारदा जी का मन ख़राब हो गया|

अगले दिन फिर से जब शारदा जी ने वाक् पर जाने के लिए दरवाज़ा खोला तो लाल धागे के दो टुकड़े ठीक सामने मैट पर पड़े हुए थे| उनका मन कुछ अनमना सा हो गया| दोनों बच्चों को लेकर वो घर की तरफ चल पड़ीं| आज वाक् में उनका मन नहीं लगा| उन्हें अपने बचपन की याद आने लगी कि कैसे उनकी दादी ने एक बार बताया था कि उनके घर पर किसी ने कुछ टोना-टुटका कर दिया था| फिर उन्हें अपनी सोंच पर हैरानी होने लगी| वो ऐसी बेवकूफी की बात सोंच भी कैसे सकती हैं| वो कोई बिना पढ़ी-लिखी अन्धविश्वासी औरत नहीं थीं| उन्होंने अपनी सोंच को झटक दिया और घर की तरफ चल पड़ीं| घर पहुंची तो देखा प्रिया शू रैक में से अपनी सैंडिल निकाल रही थी, उसने वही लाल रंग का धागा अपनी निकाल कर अपनी सैंडिल से फेंक दिया| शारदा जी बिना कुछ कहे घर के अन्दर चली गयीं| दोनों के जाने के बाद उनका मन ठीक नहीं था इसलिए वो अपनी कोई किताब लेकर पढने बैठ गयीं| थोड़ी देर में ही दरवाजे की घंटी बजी| उन्होंने जाकर दरवाज़ा खोला तो देखा प्रिया अपनी एक दोस्त के साथ खडी थी| उसकी दोस्त उसे सहारा देकर अन्दर लायी और उसने बताया की प्रिया का पैर मुड़ने से थोड़ी सी मोच आ गयी है| शारदा जी को सुबह का दृश्य याद आ गया जब प्रिया ने लाल धागा अपनी सैंडिल में से निकाल कर फेंका था| उन्हें अब सचमुच लगने लगा था कि कोई बात तो ज़रूर है| कहाँ से आ रहे हैं ये लाल धागे|

शाम को पंकज के आफिस से आने के बाद दोनों बच्चे जिद करने लगे की आइसक्रीम खाने जाना है| आज चूँकि शुक्रवार था तो सबका मन ही बाहर जाने का बन गया| डिनर और आइसक्रीम के बाद घर पहुँचते हुए नौ बज गए थे| पंकज ने कार पार्क करके जब दरवाज़ा बंद किया तो पता नहीं कैसे उसका अंगूठा दरवाजे में आ गया| थोड़ी देर के लिए तो दर्द से उसका चेहरा जर्द पड़ गया पर थोड़ी देर में उसे आराम आ गया, बस अंगूठे पर एक नीला निशान रह गया| वो लोग बातें करते हुए ऊपर आ गए| पंकज खुद हैरान था कि कैसे उसका हाँथ कार के दरवाजे में आ गया|

अगले दिन शनिवार था, शारदा जी ने आज सैर पर जाना टाल दिया| उनका मन तो आज दरवाज़ा खोलने का ही नहीं कर रहा था| आज छुट्टी का दिन था तो निशा दिशा ने कहा की चलो दादी हम लोग अपने नए पड़ोसियों से मिलकर आते हैं| शारदा जी को भी ये ख्याल अच्छा लगा| उन्होंने दोनों से कहा चलो उनके घर ले जाने के लिए पहले कुकीज़ बेक करते हैं, खाली हाँथ जाना अच्छा नहीं लगेगा| दोनों पोतियों की मदद से शारदा जी ने कुकीज़ बनायीं और उन्हें एक बास्केट में सजा कर वो निशा और दिशा को लेकर पड़ोस के फ़्लैट में जाने के लिए तैयार हो गयीं| दरवाज़ा खोला तो लाल धागे के कुछ टुकड़े उनके स्वागत के लिए पहले से मौजूद थे| उन्हें अनदेखा करके, पर ये ध्यान रखते हुए कि उनका पैर उन धागों पर न पड़े, उन्होंने पड़ोस के फ़्लैट की घंटी बजायी| दरवाज़ा दिशा की उम्र की एक छोटी सी लड़की ने खोला| शारदा जी ने उसे हैलो कहा और बताया की वो उनकी पडोसी है| निशा और दिशा ने भी उसे हेल्लो किया और अपना नाम बताया| उसने भी अपना नाम रिनी बताया और अन्दर से अपनी मम्मी को बुला लायी| रिनी की मम्मी रैन्सी ने उन्हें अन्दर बुलाया और सोफे पर बैठने को कहा| घर के अन्दर पैर रखते ही शारदा जी को हर जगह छोटे छोटे लाल धागे दिखाई दिए| तभी रिनी अन्दर से आई और उसकी गोद में एक छोटी सी बिल्ली थी| रिनी ने बताया की उसकी बिल्ली का नाम मिटन है| मिटन रिनी की गोद से कूद कर वहां पड़े धागों से खलने लगी| निशा और दिशा भी मिटन के पीछे दौड़ कर खेलने लगीं| अब तक शारदा जी को लाल धागे का रहस्य समझ में अ गया था| वो मन ही मन मुस्कुरा उठीं| सोंचने लगीं की अच्छा हुआ की अपने मन के वहम का किसी से कोई जिक्र नहीं किया|

मन भी कितना अजीब होता है| जरा सी बात पर क्या-क्या वहम पाल लेता है| रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में छोटी-मोटी चोट लग जाना बहुत आम बात है| उसे किसी अंधविश्वास से जोड़ना सही नहीं है| 

2 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’झूठ के लिए सच को दबाने का शोर - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Anonymous said...

कम पोस्ट लेकिन बेहतरीन और उम्दा लेखन।