Thursday, February 23, 2017

ध्वनि (कहानी)

तरंग हॉस्पिटल के वेटिंग एरिया की एक चेयर पर बैठी हुई थी| उसका हाथ अपने उभरे हुए पेट को प्यार से सहला रहा था, और उसका दूसरा हाथ अपने पति अनंत की उँगलियों में उलझा हुआ था| वो दोनों एक दूसरे को देख रहे थे और शायद आँखों से ही बातें कर रहे थे| उन्हें बात करने के लिए शब्दों की ज़रूरत नहीं थी| आँखें, स्पर्श और उँगलियाँ हीं काफी थी दोनों को बातें करने के लिए, वो दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे और साथ ही मूक-बधिर थे| इसलिए शब्द उनके बीच में कभी नहीं आते थे, झगडा भी होता था तो उँगलियों के इशारों में| तरंग माँ बनने वाली थी और, नौ माह का समय पूरा हो चुका था| और आज वो रूटीन चेकअप के लिए फिर से हास्पिटल आये थे|
तरंग की माँ श्रध्दा भी हर बार की तरह उनके साथ ही थी और सामने की कुर्सी पर बैठी तरंग और अनंत को देख रहीं थीं| उन्हें याद आ रहा था कि आज से २५ साल पहले ऐसे ही एक दिन वो भी तरंग के जन्म के समय हास्पिटल आयीं थीं, तब उनके मन में कोई शंका नहीं थी| वो पहले ही तीन साल के बेटे उमंग की माँ थीं| बहुत ही प्यार करने वाले और उन्हें समझने वाले पति विवेक उनके साथ थे| उनके सास-ससुर और माँ-पिता दोनों परिवारों में बहुत ही अच्छे सम्बन्ध थे| ज़िन्दगी बहुत ही अच्छे से चल रही थी| बेटे उमंग का नाम रखते समय ही उन्होंने सोंच लिया था कि वो अपने दूसरे बच्चे का नाम, चाहे वो बेटा हो या बेटी तरंग ही रखेंगी| उमंग-तरंग उनके दो बच्चों से उनका घर गुलज़ार हो जाएगा| और जब तरंग पैदा हुयी तो उनकी खुशियों का ठिकाना न रहा| वो सच में थी भी एक गुलाबी रंग की गुडिया सी| इतनी बड़ी-बड़ी आँखें थीं उसकी कि लगता है पैदा होते ही आँखों से बातें करने लगी थी|
 वो कभी भी ज्यादा रोई नहीं| बस जब भी उसके पास जाकर उसे देखो तो उसके चहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती| तरंग के जन्म के थोड़े दिन के बाद ही श्रध्दा को कुछ गड़बड़ी का अहसास होने लगा था| वो जब किचन से काम करते हुए रोती हुयी तरंग को चुप कराने की कोशिश करतीं तो उसका रोना बंद ही नहीं होता, उमंग तो जब छोटा था उनकी आवाज़ से ही चुप हो जाता था| पर तरंग को तो जब तक पास जाकर चुप न कराओ, वो चुप ही नहीं होती| उमंग नन्ही बहन के पास जब झुनझुना बजाता तो वो उसकी तरफ मुड़ कर कभी नहीं देखती| जया के मन में कई बार आया कि कहीं ऐसा तो नहीं की तरंग ठीक से सुन न पा रही हो, पर उन्होंने अपने इस विचार को झटक दिया| पर अनहोनी को वो टाल नहीं सकीं| डाक्टर की अगली विजिट में ये कन्फर्म हो गया कि तरंग कभी भी सुन या बोल नहीं सकेगी|
 श्रध्दा को एक बार को तो लगा कि उनकी भरे-पूरे परिवार को किसी की नज़र लगा गयी है| वो ये स्वीकार ही नहीं कर पा रहीं थीं कि नियति उनके साथ इतना क्रूर मज़ाक कर सकती है| कुछ दिन क्या कुछ महीनों तक वो संताप में ही डूबी रहीं| पता नहीं कितने डाक्टरों को दिखाया| पर सबका एक ही जवाब था कि कुछ नहीं किया जा सकता| होम्योपैथी और आयुर्वेद की भी शरण ली पर कहीं से भी कोई फायदा नहीं हुआ|
फिर एक दिन श्रध्दा ने अपने मन को समझा लिया| उन्होंने सोंच लिया कि इससे भी ज्यादा बुरा कुछ हो सकता था| पर उनकी प्यारी सी बेटी उनके पास है और उसमें कोई कमी नहीं है| वो उसे पढ़ा-लिखा कर इतना मजबूत बना देंगी कि उसकी ये छोटी सी कमी किसी को नज़र ही नहीं आयेगी|
और फिर पहले उन्होंने खुद संकेत भाषा को सीखा और बाद में धीरे-धीरे उमंग और विवेक भी इसे आराम से सीख गए| श्रध्दा के प्राण संगीत में बसते थे पर तरंग की वजह से उन्होंने संगीत सुनना छोड़ दिया, उन्हें लगता की संगीत सुनकर वो कुछ गलत कर रहीं हैं| उनका घर एक अजीब सी ख़ामोशी से भर गया| और धीरे धीरे तरंग बड़ी होने लगी| पर तरंग थी अपने आप में एक निराली लड़की| वो सुन-बोल नहीं सकती थी पर उसकी बड़ी-बड़ी आँखे अपने आस-पास की सारी ख़ामोशी सोख लेतीं थीं| उसकी चाल में एक ऋदम थी| एक दिन उसने टीवी पर किसी शो में भरतनाट्यम देखा और जिद पकड़ ली की उसे ये नृत्य सीखना है| श्रध्दा को लगा कि तरंग कैसे भरतनाट्यम सीख पायेगी, नृत्य का एक बहुत बड़ा हिस्सा तो संगीत होता है और बिना सुने तरंग कैसे न्रत्य कर पाएगी| पर तरंग की जिद के आगे श्रध्दा हार गयी और उसे तरंग को भरतनाट्यम क्लासेज़ के लिए लेकर जाना ही पड़ा|
शुरू शुरू में तो तरंग को थोड़ी दिक्कत हुई, फिर धीरे धीरे उसने संगीत की बीट, उसके विस्पंदन, उसकी तरंगों को समझना शुरू कर दिया| तरंग की किस्मत से उसे एक बहुत ही अच्छी और उसकी समस्या को समझने वाली गुरु मिल गयीं| और फिर तो नृत्य और तरंग एक दूसरे के पूरक हो गए|
नृत्य और पढाई दोनों में ही तरंग हमेशा अव्वल आती रही| कभी-कभी श्रध्दा को महसूस होता कि उनकी बेटी में कोई कमी नहीं है| ज़िन्दगी से भरी हुयी अपनी बेटी उन्हें सम्पूर्ण दिखाई देती| तरंग के बड़े होने पर श्रध्दा को अब एक नया ख्याल सताने लगा था, वो ख्याल था उसकी शादी का| दिन-रात उठते-बैठते उन्हें यही परेशानी रहती कि तरंग को क्या कोई ऐसा जीवन साथी मिल पायेगा जो उसकी कमी को समझते हुए उसे सम्मान के साथ अपना सके| विवेक श्रध्दा को समझाते रहते की तुम परेशान मत हो, जैसे अब तक तरंग के जीवन में सब कुछ अच्छा हुआ है, अब भी अच्छा ही होगा| पर माँ के दिल को कोई चिंता करने से रोक पाया है|
पर श्रध्दा की चिंता का अंत जल्दी ही हो गया| उमंग की शादी उसकी पसंद की लड़की से तय हो चुकी थी| उमंग बैंगलौर की एक मल्टिनैशनल कंपनी में जॉब करता था, और बैंगलौर से उसका एक दोस्त अनंत भी शादी में आया था| अनंत भी तरंग की तरह मूक-बधिर था और एक पेंटर था| शादी की भाग-दौड़ और मस्ती में तरंग और अनंत अच्छे दोस्त बन गये| जब दोनों ने शादी करने की इच्छा जतायी तो किसी को भी कोई ऐतराज़ नहीं हुआ| उत्तर और दक्षिण, दोनों रीतिरिवाजों के अनुसार खूब धूम-धाम से दोनों की शादी हो गयी| शादी के बाद अनंत, तरंग के लिए दिल्ली शिफ्ट हो गया| तरंग भरतनाट्यम में पूरी तरह पारंगत हो चुकी थी और स्टेज परफार्मेंस भी करती थी| उसने मूक-बधिर बच्चों के लिए एक डांस स्कूल भी खोल लिया था और श्रध्दा उसके इस काम में उसकी सहायता करती|
और फिर एक दिन तरंग ने उसे वो खुशखबरी सुनायी जिसे सुनने के लिए हर माँ इंतज़ार करती है| पर तरंग की प्रेगनेंसी की खबर सुनने के बाद श्रध्दा चिंता में डूब गयी| वो खुश तो होना चाहती थी पर उसके संशय उसे खुश नहीं होने दे रहे थे| श्रध्दा को यही चिंता थी की कहीं तरंग का बेटा या बेटी भी अनंत और तरंग की तरह ही न हों| श्रध्दा भूल चुकी थी कि तरंग और अनंत अपने आप में सम्पूर्ण हैं| सुनने और बोलने की शक्ति न होते हुए भी वो सफल और खुश हैं| उन्हें इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं था कि उनका बच्चा कैसा हो| वे उसे अपनाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे| श्रध्दा डाक्टर की हर विज़िट के लिए तरंग और अनंत के साथ हास्पिटल आती और हर बार डाक्टर से वही सवाल करती कि क्या उनका बच्चा भी उनके जैसा होगा| और डाक्टर श्रध्दा को समझाने की कोशिश करता कि इस बात की ९०% उम्मीद है कि उनका बच्चा नार्मल होगा, मतलब वो सुन और बोल सकेगा, पर १०%इस बात की उम्मीद है कि उनका बच्चा भी उनकी तरह मूक-बधिर होगा|
डाक्टर से मिलने के बाद अनंत और तरंग अपने घर चले गए और श्रध्दा अपने घर आ गयी| श्रध्दा का किसी काम में मन नहीं लगा रहा था| वे उमंग और तरंग की बचपन की तस्वीरें लेकर बैठ गयीं| तभी तरंग के घर से उसकी एक पडोसी का फोन आया की तरंग को लेबर पेन शुरू हो गए हैं और वो दोनों हास्पिटल चले गए हैं|
श्रध्दा भी विवेक को लेकर हास्पिटल पहुँच गयीं| बैंगलौर में भी अनंत के घरवालों और उमंग को खबर कर दी गयी| हॉस्पिटल पहुँच कर तरंग को मूक दर्द से तड़पते देख कर श्रध्दा अपनी सब चिंताओं को भूल कर उसकी तीमारदारी में लग गयीं| विवेक अनंत को सांत्वना देने में लग गए| १२ घंटे के लेबर के बाद तरंग को एक प्यारी सी बेटी हुई| शाम तक सभी लोग अनंत के माता पिता, उमंग और उसकी पत्नी सायरा भी आ गये| तरंग को रूम में शिफ्ट कर दिया गया था|
सभी लोग कमरे में थे और तरंग की बिटिया के आने का इंतजार कर रहे थे| तभी अनंत और विवेक एक नर्स के साथ वहां आ गए| बिटिया को वो लोग चैकअप के बाद डाक्टर के पास से ले आये थे| नर्स ने बच्ची को तरंग की गोद में दे दिया| सब लोग चुपचाप विवेक और अनंत को देख रहे थे जैसे की किसी परीक्षा के नतीजे के इंतजार में हों| किसी की कुछ पूंछने की हिम्मत नहीं हो रही थी| ख़ास-तौर से श्रध्दा के लिए ये एक-एक क्षण काटना मुश्किल हो रहा था| आखिर विवेक ने चुप्पी तोड़ी और मुस्कुराते हुए बताया कि बिटिया बिलकुल नार्मल है| वो सुन और बोल सकेगी| कमरे में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी| ये सभी के लिए डबल ख़ुशी की बात थी| वैसे तो सभी लोगों को अनंत और तरंग की तरह बिटिया किसी भी रूप में स्वीकार थी पर अब ये खबर सुनकर सभी की ख़ुशी दोगुनी हो गयी थी|  तभी बिटिया की दादी ने पूछा भई नाम क्या रखना है इस गुडिया का| तरंग और अनंत ने एक दूसरे की तरफ अर्थभरी नज़रों से देखा और इशारे से बताया कि उन दोनों ने पहले से ही नाम सोंच रखा है| अनंत ने पास पड़ी मेज से एक कागज़ और कलम उठाया और उस पर लिखा, ध्वनि | तरंग ने अपनी बिटिया को श्रध्दा की तरफ बढ़ाया, श्रध्दा ने उसे अपनी गोद में ले लिया| तरंग ने अपनी उँगलियों कि भाषा में कहा, “माँ! ये है मेरी ध्वनि, आपके लिए! आपने मुझे कभी नहीं सुन
पाया अब इसे जी भर के सुनना| अब इसके साथ संगीत सुनना और इसे अपना संगीत सिखाना|” सभी की आँखें भीगी हुई थीं, पर ख़ुशी के आंसुओ से|

-अभिसारिका 













2 comments:

rashmi ravija said...

बहुत प्यारी कहांनी है,बड़ी मीठी सी।
माता पिता साथ खडे हों तो कोई राह दुष्कर नहीं होती। ईश्वर एक कमी देता है तो कई दूसरे गुणों से नवाज़ देता है।

Sarika Saxena said...

Thank you Rashmi Di आपकी प्रतिक्रिया का ही इंतज़ार था