सुन्दरता की परिभाषा
“वास्तविक सुन्दरता क्या होती है?” कल कुछ ऐसा हुआ कि मन इस प्रश्न पर विचार करने पर मजबूर हो गया है| कल
हैदराबाद से वापस आते हुए एयर पोर्ट पर बैठ कर फ्लाईट का इंतज़ार कर रहे थे, फ्लाईट
डिले थी और एयर पोर्ट रेलवे स्टेशन की तरह खचा-खच भरा था| हमारे पड़ोस में ही एक
दम्पति बैठे थे, उम्र कुछ ५५-६० के करीब रही होगी| दोनों पति-पत्नी आराम से हिंदी
में जोर-जोर से बात कर रहे थे| उन्हें हमारे परिवार की बातचीत से लगा होगा कि हम
हिंदी नहीं समझते होंगे| इसलिए शायद वो इतनी जोर से बात कर रहे थे| तो उनकी बात-चीत
कुछ इस प्रकार थी:
“लल्ला बाबू की जे कुछ समझ में न आई| शादी कराने की इत्ती भी का जल्दी मची थी
कि ऐसी लड़की से अपने छोरा को ब्याह दये|”
“हां लड़की के नाक नक्श ठीक नहीं लगे| बस गोरी होने से ही क्या होता है|”
“अपना परथम तो देखने में कित्ता नीका लगे है, रंग बस थोडा दबे है, पर लड़कों का
रंग थोड़ी देखा जाबे है| इंजिनियर है और का चाही|”
“हाँ लड़की भी वैसे सुना है इंजीयरिंग के बाद MBA करी है, नौकरी करती है| पर
शकल भी कोई चीज़ होती है| न भई, लड़की सुन्दर नहीं देख पाए लल्ला बाबू|”
“जेई तो हम भी कह रहीं हैं, कोई जोड़ नहीं बैठा दोनों का| चाहे खर्चे कित्ता भी
किये रहे हों समधियाने वाले पर लड़की का रूप भी तो देखे चाही|”
“चलो हमें क्या करना है| वो जाने और उनका काम जाने| हमें तो बस समझ न आई लल्ला
बाबू की|”
“और क्या हमें क्या लेना देना| चलो छोड़ो, कौन सा हमारी बहु है|”
ये बात-चीत हमने संक्षेप में लिखी है| करीब आधे घंटे वो लोग इसी विषय पर
बतियाते रहे और हम उनकी बातें सुनकर मन ही मन कुढ़ते रहे| लड़की लडके से ज्यादा
पढ़ी-लिखी है, नौकरी करती है, उसके मां-बाप ने खूब पैसा भी खर्च किया और तो और गोरी
भी है, पर सुन्दर नहीं है| क्या है इसका मतलब?
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