बातें जो दिल से निकलीं ...पर ज़ुबां तक न पहुंची ...बस बीच में ही कहीं कलम से होती हुयी पन्नों पर अटक गयीं... यही कुछ है इन अनकही बातों में...
वक़्त की अंगीठी में सुलग कर, चुक गया ये साल भी
लो फिर से आया है दिसंबर ज्यों अंत है शुरूवात भी.
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