अब तो ऊब हो गए बादलों की आँख मिचौली से..वैसे सब बैंगलौर के मौसम की तारीफ़ करते नहीं थकते ..हमें भी ये रूमानी सा मौसम बहुत भाता है....पर आज कल पता नहीं ये मौसम उदास सा लगने लगा है...सब कुछ सीला -सीला सा लगता है..पिछले साल पुराने घर में अपनी पुरानी दोस्तों के साथ समय पंख लगा कर उड़ जाता था..पर यहाँ नई जगह नया माहौल सबकुछ अजनबी सा लगता है ...हम वैसे भी दोस्त बनाने में बहुत कच्चे हैं.. बहुत वक्त लगाते हैं दोस्त बनाने में ... तो बस इंतज़ार है एक खिली खिली सी सुबह का खिले हुए सूरज का.. खुले हुए दिन का ..ये ऊबन तो टूटे कम से कम ....
...और मन के मिजाज़ से मेल खाती एक गुलज़ार की नज़्म...
सांस लेना भी कैसी आदत है
जिए जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में
पाँव बेहिस है, चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से कितनी सदियों से
जिए जाते हैं, जिए जाते हैं
आदतें भी अजीब होती हैं.
17 comments:
:) :) ...
जल्दी ही टूटेगी यह उदासी ...गुलज़ार साहब की नज़्म बहुत अच्छी है ..
ओह्ह !! तुमने तो सच्ची उदास कर दिया,सारिका...तुम्हारा मूड और उसपर ये नज़्म...कभी कभी अच्छी लगती है वैसे ये उदासी भी...इस मूड को भी एन्जॉय करो..
दीदी होने के नाते कुछ नसीहत भी दे दूँ..(उधार की :))
अगर साँस लेने का नाम ही है, ज़िन्दगी
तो सांस लेने के अंदाज़ बदलते रहिए
सच कहा आपने । कल रात भोपाल से लौटा हूं। यहां बंगलौर का मौसम तो कुछ अजीब सा ही हो रहा है। सचमुच मुझे तो आते ही धूप की चाहत हो आई।
सच सारिका...........यहाँ भी कुछ यूँ ही कुछ उदास उदास सा है, ऐसे में यहाँ आकर तुमको और इस नज़्म को पढ़ना...... कुछ तो अच्छा सा महसूस हुआ।
नज़्म दोबारा से पढना सुखद लगा
sarikaji,
janm din ki bahut bahut badhai evam-shubh-kaamnayen
najm bahut achchhi hai
Thanks to all of you..
तो बस इंतज़ार है एक खिली खिली सी सुबह का खिले हुए सूरज का.. खुले हुए दिन का ..ये ऊबन तो टूटे कम से कम ....
..jarur uban tutegi... lagta hai naye mauhal mein ajeeb sa... fir sab theek ho jata hai..
pahli bar aapka blog dekha.. bahut achha laga.. abhi kuch rachnayne padhi...
Janamdin kee bahut bahut hardikh shubhkamnayne
आप सभी का शुक्रिया !
वाकई आदतें भी अजीब होती हैं लेकिन आप तो शायद कनाडा में थीं ना? या मेरे को ही शुरू से गलतफहमी थी।
हाँ हम पहले यू एस में ही थे , २००६ में भारत शिफ्ट हो गए..
सारिका जी हम तो आपका ही लिखा पढना पसंद करेंगे ....
उम्मीद है अगली बार आपकी ही कोई उम्दा सी नज़्म पढने को मिलेगी .....!!
हरकीकरत हीर जी कह चाहत में
मेरी चाहत भी समझ लीजिए
अगली बार न सही
उससे अगली बार न सही
पर एक बार तो
आपने रचा ही होगा
नहीं तो रचना होगा
वैसे आपकी मुस्कराहट
एक उम्दा नज़्म का ही
अहसास देती है
इस नज़्म रूपी मुस्कराहट को
फोटोकापी करके बांटती चलिए
सबके दिलों से गमों के कांटे
बेछुरी ही काटती चलिए।
acha laga apke blog par aakar..apki beti ke bare me jana apke bare mein kuch jana...
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...बहुत अच्छा लगा ब्लॉग भी और ये देख कर भी के आपको पढने लिखने का उम्दा शौक है...यहाँ तक की किताबें खरीद कर पढने का शौक जो अब इतना नहीं रहा जितना पहले कभी हुआ करता था...
बंगुलुरु तो जाना ही बादलों के कारण जाता है...:)) आप बादलों से ही उकता गयीं...कोई बात नहीं जल्द ही सूरज निकलेगा और धूप भी खिलेगी...इंतज़ार कीजिये...
नीरज
Sarika,
:)
Ashish
interesting writings...
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