Saturday, January 23, 2010

कहानी नीयति भाग २


पहला भाग
एम ए फाइनल इयर में दशहरे की छुट्टियों में वो अपने मामा के बेटे की शादी में मैसूर गई। वहां से लौटकर उसके रंग कुछ बदले से लगे। लगा पहले से ही बेहद खूबसूरत ये लडकी कुछ और भी निखर गई थी। पर कुछ चुप-चाप सी भी लगी। मुझसे वो कुछ छपाना चाहे तो भी छिपा नहीं पाती थी। एक दिन जब वक्त मिला बातों का तो पता चला मैसूर में अपने मामा के घर उसने अपने दिल पर किसी की दस्तक को महसूस किया था। पर वो थी एक मजबूत शख्सियत की मालिक। उसके दिल को चाहें वो अच्छा लगा था। पर उसने अपनी जुबां से कभी कुछ नहीं कहा न उस शख्स ही कुछ महसूस होने दिया। और शायद ये उसके हक में ही हुआ। क्योंकि वो शख्स जिसने उसके कभी किसी के लिये न धडकने वाले मासूम से दिल को धडका दिया था उसके लायक था ही नहीं। वो तो बस उसके दोस्तों से लगी एक शर्त थी। प्रियंका ने उसे एक दिन बात करते सुन लिया था "ये लडकी तो किसी दूसरी दुनिया की ही लगती है। इसे पिघलाना मेरे बस का काम नहीं। भई मैं शर्त हार गया।" ये सुन कर प्रियंका को धक्का जरूर लगा पर वो टूटी नहीं। उसका दिल जरूर टूटा पर उसका किरदार, उसका स्वाभिमान सलामत था। बस ऎसे ही दिन गुज़रते रहे और हम दोनों ने एम ए के साथ-साथ कम्पयूटर कोर्स भी कर लिया।

पढाई खत्म होते ही हम अपने पैत्रक शहर बिजनौर आ गये। खतों और फोन के जरिये हमारी दोस्ती कायम थी। एकदिन फोन पर उसकी चहकती हुई आवाज़ ने बताया कि उसकी शादी तय हो गई है। पंजाबियों में शायद लडके वाले लडकी मांगते हैं। शायद ऎसा ही उसकी बातों से हम समझ पाये कि उसकी दीदी की ससुराल की तरफ से किसी ने रिश्ता भेजा था। लडके का अपना बिजनेस है। लडके की मां किसी स्कूल में पढाती हैं। एक बहन की शादी हो चुकी है। घर में और कोई नहीं है। प्रियंका की मम्मी भी बहुत खुश थीं कि चलो छोटा परिवार है। कोई जिम्मेदारी नहीं है। लडके का जमा जमाया बिजनेस है।
प्रियंका की तो खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। रोज़ ही मुझे फोन करती। कहती, "अब तो प्यार कर सकती हूं न सोनिया? सच कहूं मुझे तो अंश से प्यार हो ही गया है। इतनी डैशिंग पर्सनौलिटी है अंश की कि क्या बताऊ। मैं तो उनके सामने कुछ भी नहीं हूं। पर जाने क्यों सगाई के बाद भी उन्होंने एक फोन तक नहीं किया।" उसकी सब बातें सुनते हुये मन में न जाने कहां से एक लाइन गूंज गई, "इस प्यारी सी लडकी को प्यार में हमेशा धोखा मिलेगा।" मन ने अपने आप को धिक्कारा कि मैं क्या उलटा सीधा सोंचने बैठ गई। फिर कुछ ही महीनों में उसकी शादी हो गई। प्रियंका के इतना बुलाने पर भी मैं उसकी शादी में नहीं ही जा पायी। बीच-बीच में उससे बात होती रहती। पर पता नही क्यों उसकी बातों में अब वो जोश नहीं होता। कभी कहती सास सामने बैठी हैं। कभी अंश सो रहे हैं। जोर से बात करूंगी तो जाग जायेंगे।
फिर मेरी भी शादी तय हो गई। शादी दिल्ली से होनी थी। मैंने पापा को पहले ही मना लिया कि जाते हुये कुछ देर मेरठ जरूर रुकेंगे। सोंचा था उसके घर जाकर उसे सर्प्राइज़ देंगे। उसके दिये पते पर पहुंचे तो अजीब सा लगा। ढेर सारी लोहे और सीमेंट की दुकानों के बीच एक अंधेरी सी गली का पता था। पहले बाहर से खडे होकर ही आवाज़ लगाई। फिर जब कोई जवाब नहीं आई तो भाई को साथ लेकर अंदर गये। कई बार आवाज़ लगाने पर प्रिया बाहर आई। मुझे देख कर कितना खुश हो गई। हम दोनों जब एक-दूसरे से गले मिले तो दोनों की आखों में आंसू थे। पर प्रियंका बिल्कुल ही बदली हुई लगी।उसके लंबे काले बाल कंधे तक रह गये थे। और बहुत ही दुबली दिख रही थी। उस दो कमरे के छोटे से मकान में वो बिल्कुल अजनबी सी दिख रही थी। मैंने पूछ ही लिया, "तुम तो कह रहीं थी कि तुम्हारा बडा सा बंगला है सिविल लाइन्स में।" पूंछने के बाद मुझे अपने ऊपर पछतावा हुआ। पर तब तक तीर कमान से निकल चुका था जिसने प्रियंका के चेहरे को और मुरझा दिया था। बोली, "है बंगला, पर उसे किराये पर उठा दिया है। मम्मी जी का स्कूल यहीं से पास पडता है और इनकी दुकान भी बाहर है।" मन को एक धक्का सा लगा कि उसके डैशिंग अंश की लोहे की दुकान है।
वो हमें अपने कमरे में ही ले गई। जहां उसके पति देव दिन के ग्यारह बजे सोये पडे थे। उसने धीरे से उन्हें जगाया औए हम लोगों का परिचय कराया। एक हल्की सी हैलो कहकर वो बाहर चले गये। उसके कमरे में उसकी झलक कही भी दिखाई नहीं दी। और उस अजनबी माहौल में मैं उससे कुछ ज्यादा बात भी नहीं कर पायी। फिर भाई भी तो साथ ही बैठा था। बातों से पता चला कि उसे जाइंडिस हो गया था। काफी समय बीमार रही उसी बीमारी में उसके सब बाल झड गये। बोली खाना खाकर जाना। पर मन नहीं माना और रुकने का। हम लोग जब चलने ले गे तो बोली रुको अंश छोड देंगे। पर उसके अंश जब दस मिनट तक बाहर नहीं निकले तो हम लोग वापस चले आये। उसने मुझे एक बिंदी का पत्ता और एक लिपिस्टिक देकर कहा "पहले पता होता कि तुम आ रही हो तो तुम्हारे लिये कुछ अच्छा सा लेकर रखते। तुम्हारी शादी का गिफ्ट उधार रहा।" मैं भरे मन से वापस आ गयी। लौटते हुये भाई ने कहा "दाल में कुछ काला लगता है।" तो हमने उसे डांट दिया। कहा "तुम्हें तो सब दाल काली दिखती हैं, कलर ब्लाइंड हो" कहने को तो हमने उसे कह दिया पर हमें भी सब-कुछ ठीक नहीं लगा। पर अपनी शादी के उत्साह में उसकी चिन्ता कुछ दब सी गई।

2 comments:

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

मार्मिक कहानी. दिल को छू गयी.
शुभकामनायें

Chauhan said...

कहानी अच्छी है
अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा