Wednesday, July 13, 2005

मन तितली

तितली बन मन पंख पसारे।
बिखरे रंग धनक के सारे।

शोख हवा से लेकर खुशबू;
लिख दी पाती नाम तुम्हारे।

हुई आज मैं अपने पिय की;
टंक गये आंचल चांद-सितारे।

बाबुल अंगना छूटा अब तो;
चली आज मैं पिया के द्वारे।

प्यार की पहली बारिश में ही;
डूब गया मन संग तुम्हारे।

भर नज़रों से तुमने देखा,
झुक गईं अंखियाँ लाज के मारे।

अम्बर से कुछ स्याही लेकर;
लिक्खा खुद को नाम तुम्हारे।

तुमसे मिलना बातें करना;
पल में बीते लम्हे सारे।

संग तुम्हारे निकले घर से;
बढ के कोई नज़र उतारे।

Monday, July 11, 2005

कहना है......

कहना है बहुत कुछ उन्हें भी लेकिन,
जाने क्यों इज़हार नहीं करते;
दिल में एक चुभन उन्हें भी है,
पर जाने क्यों अहसाह नहीं करते।

अक्सर आंखों मॆं उनकी,
कुछ सवाल लहराते देखे हैं।
अक्सर बातों में उनकी
कुछ अधूरे प्रश्न से देखे हैं;
बातें हैं दिल में लाखों
पर जाने क्यों बात नहीं करते।

कहते हैं करार उन्हें है,
पर बेकरार से दिखते हैं।
देख कर मेरी आंखे भीगी ,
कुछ बेज़ार से लगते हैं।
है कोई नहीं मेरा उनके सिवा
जाने क्यों स्वीकार नहीं करते।

अंदाज उन्हें है प्यार का मेरे,
फिर क्यूं इम्तहान सा लेते हैं
हर एक खुशी देकर जैसे
कोई अहसान सा कर देते हैं
प्यार उन्हें भी हमसे है
जाने क्यों स्वीकार नहीं करते।

Friday, July 08, 2005

एक गज़ल

तेरी एक नज़र ने आज मुझे इस तरह सजाया है।
मिरे आगे आज तो कुछ चांद भी शरमाया है।

मांग मेरी मोती , सितारों से भर गई।
माथे पे मेरे आज महताब जगमागाया है।

लम्स ने तेरे मुझ पे जादू सा कर दिया।
हर शख्स मेरी जानिब तक के मुस्कुराया है।

एक खुनक सी बिखर गई है मौसम में ।
हवाओं ने फिर से कोई नया गीत गुनगुनाया है।

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तेरी कमगोई से पहले ही थे गिले बहुत,
चुप रह के सितम तुमने कुछ और भी ढाया है।

नम हो गईं महफिल में सभी की आंखे
हाले दिल उसने कुछ इस तरह सुनाया है।