Wednesday, March 22, 2017

सड़क


लड़कियां


स्याही


विश्व कविता दिवस पर


बोगनविला - कुछ बिखरे अहसास






ग़ज़ल



बोनसाई


खूबसूरत झूठ


झूठ


गौरया


फिर एक वादी में हम गए

 थे जर्द फूल खिले हुए

 चल रहे थे दोनों हम 

हाथ में हाथ लिए हुए 

फिर वहीं किसी एक मोड़ पे 

तुम हाथ छोड़ के चल दिये

 मैं खड़ी रही उस मोड़ पे

 तेरे लौटने की आस में 

कि नींद मेरी खुल गयी

 तुम थे यहीं मेरे पास में

 वो एक बुरा बस ख़्वाब था 

मेरे ख़्वाबों की ताबीर तुम

 मेरे पास हो तो गिला है क्या 

मेरी ज़िंदगी एक ख़्वाब से

 कहीं और ज़्यादा हसीन है। 

झूठ


ग़ज़ल


चाँद



शब्दों से मटरगश्ती


गुरुर


चाँद


वसीयत


चाँद


रात


तवायफ


अमावस का चाँद


नन्ही लड़की

मेरे इस

संजीदा सी औरत के 

किरदार के पीछे

 मेरे अंदर

 एक नन्ही लड़की 

रहा करती है, 

जो चाहती है

 तितलियों के पीछे

 नंगे पाँव भागना;

 समुन्दर किनारे 

गीली रेत से

 घरौंदे बनाना;

 मुझे मालूम है 

कि वो नन्हीं लड़की 

सिर्फ़ इसीलिए 

अभी भी ज़िंदा है 

क्यूँकि वो बचपन से ही

 क़ैद थी 

पाबंदियों के घेरे में 

अगर वो बचपन में ही

 तितलियों के पीछे भागी होती

 या रेत से खेली होती 

तो आज यूँ 

 बच्चों के खेल

 देख के ललकती नहीं ....

 पर कोई गिला नहीं

 फिर भी ज़िंदगी से 

आज मेरे अंदर की नन्ही लड़की 

की दो हम उम्र सहेलियाँ हैं

 हाँ, मैं माँ भी हूँ

 और दोस्त भी अपनी बेटियों की... 

उन्हें पूरी इजाज़त है

 अपना बचपन बेलौस जीने की,

 और मेरे अंदर की 

नन्ही लड़की को इजाज़त है 

फिर से बचपन को जी लेने की 

हरारत


किताब


चाँद


धूप


मन्नत का धागा


चाँद-सूरज


दर्द


चाँद - ग़ज़ल


ईश्वर


इंतहा


साये


सूरज


सुबह का चाँद


ख्वाब


चाँद


जिंदा किताब


खता


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इश्क का गुलाल


वक्त का मरहम


गुलाल