Saturday, December 25, 2010

ख़्वाब

कच्ची मिटटी से थे
जो ख़्वाब  कल बनाए थे,
चलो  आज पका लें उन्हें
अपने हांथो की
गर्मी से, अपनी साँसों की तपिश से
की ख़्वाब हैं ये तो
इन्हें चाहिये बस
हांथों की नरमी और साँसों की नर्मी
नहीं मिला जो इन्हें
तेरी बाहों का सहारा
तो बह जायेंगे आंसुओं के
समंदर में.......

13 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत ख़याल


यहाँ आपका स्वागत है

गुननाम

रश्मि प्रभा... said...

chalo paka len kisi sapne ko hakikat bana len

रश्मि प्रभा... said...

Friday, December 18, 2009
खामोश मुलाकात
लफ़्ज फूलों से झरे
तेरे लबों से;
और मैंने चुन लिया उन्हें,
अपनी हथेलियों के दोनों में.
तहा के रख दिया,
वक्त की पैरहन के साथ.
ताकि जब मन उदास हो,
और तुम बेतरह याद आओ;
तो, फिर से जी सकूं-
उन बेशकीमती लम्हों को,
फिर से सुन सकूं-
तेरी आवाज़ के नग्मों को.
छू सकूं तेरे
छुई-मुई से लव्ज़ों को;
दोहरा सकूं आज की इस
छोटी सी खामोश मुलाकात को,
जब तुमने कहा तो कुछ नहीं था,
पर मेरे मन ने सुन लिया था,
तेरी अनकही बातों को!
yah rachna vatvriksh ke liye bhejiye rasprabha@gmail.com per parichay tasweer aur blog link ke saath

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi.

उपेन्द्र नाथ said...

सारिका जी गहरे जज्बात है इस कविता .... बहुत ही भावपूर्ण बन पड़ी है ये छोटी सी कविता. बधाई
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
रमिया काकी

अनुपमा पाठक said...

खूबसूरत भाव!

vandana gupta said...

वाह! कितनी सादगी से इतनी गहरी बात कह दी।

वाणी गीत said...

इन ख्वाबों को पका लें ...
हाथों की गर्मी से , सांसों की नर्मी से ...
सुन्दर !

Dorothy said...

दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Sunil Kumar said...

bahut achhi rachna der se aapke vlag par aane ki galti meri hi hai ...

कविता रावत said...

bahut sundar bhavabhivykti...

Brajesh Pandey said...

bahut badiya hai.....

Santosh Bangar said...

bhut achha likhti hae emotionl thoughts 1s time here i have food blog do visit