कच्ची मिटटी से थे
जो ख़्वाब कल बनाए थे,
चलो आज पका लें उन्हें
अपने हांथो की
गर्मी से, अपनी साँसों की तपिश से
की ख़्वाब हैं ये तो
इन्हें चाहिये बस
हांथों की नरमी और साँसों की नर्मी
नहीं मिला जो इन्हें
तेरी बाहों का सहारा
तो बह जायेंगे आंसुओं के
समंदर में.......
बातें जो दिल से निकलीं ...पर ज़ुबां तक न पहुंची ...बस बीच में ही कहीं कलम से होती हुयी पन्नों पर अटक गयीं... यही कुछ है इन अनकही बातों में...
Saturday, December 25, 2010
Wednesday, December 01, 2010
काहे को ब्याही बिदेस...
पापा-मम्मी |
Family photograph |
पापा-मम्मी बैंगलौर में... |
आज ये सब बातें हम इसलिए सोंचने बैठे हैं क्योंकि हम अपने मम्मी पापा को बहुत याद कर रहे हैं| पता नहीं क्यों उन्हें इतना याद करने पर भी हम उनसे फोन पर बात नहीं कर पाते| पिछले करीब दो महीने वो लोग हमारे साथ बैंगलौर में थे| वो दो महीने उनके साथ कैसे बीत गए पता ही नहीं चले| वेंकट यू एस गए हुए थे...हमने ये सारा वक्त मम्मी पापा के साथ ऐसे गुज़ारा जैसे शादी से पहले रहते थे| मम्मी ने पूरा किचन संभाल लिया था | रोज़ दोपहर -शाम को गरम- गरम खाना तो जैसे भूल गए थे| खुद बना कर खाने में वो मज़ा कहाँ है जो माँ के हाँथ के बनाए खाने में है| मम्मी पापा की वजह से ही अपना इतने दिनों का बिसराया शौक फिर से शुरू कर दिया| घर -ग्रहस्थी के चक्कर में हम जो क्राफ्ट बिलकुल भूल गए थे वो उन लोगों के कहने से फिर शुरू कर दिया| कोई भी नयी चीज़ बना कर उन लोगों को दिखाने में कितना अच्छा लगता था| और पापा हमेशा तारीफ़ करने के साथ expert comment देना नहीं भूलते थे|
My Dashing Papa |
हमारी शादी.. |
आज उन लोगों को वापस गए तीन हफ्ते हो गए हैं| जिंदगी पहले जैसी कल रही है पर दोपहर में जब अकेले खाना खाने बैठते हैं तो न चाहते हुए भी आंसू आ जाते हैं| पेट भी नहीं भरता, रात को फिर बच्चों के और वेंकट के साथ खाकर पेट भरता है|
I really miss you papa- mummy!
काश आप हमेशा हमारे पास रह सकते|
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