अब तो ऊब हो गए बादलों की आँख मिचौली से..वैसे सब बैंगलौर के मौसम की तारीफ़ करते नहीं थकते ..हमें भी ये रूमानी सा मौसम बहुत भाता है....पर आज कल पता नहीं ये मौसम उदास सा लगने लगा है...सब कुछ सीला -सीला सा लगता है..पिछले साल पुराने घर में अपनी पुरानी दोस्तों के साथ समय पंख लगा कर उड़ जाता था..पर यहाँ नई जगह नया माहौल सबकुछ अजनबी सा लगता है ...हम वैसे भी दोस्त बनाने में बहुत कच्चे हैं.. बहुत वक्त लगाते हैं दोस्त बनाने में ... तो बस इंतज़ार है एक खिली खिली सी सुबह का खिले हुए सूरज का.. खुले हुए दिन का ..ये ऊबन तो टूटे कम से कम ....
...और मन के मिजाज़ से मेल खाती एक गुलज़ार की नज़्म...
सांस लेना भी कैसी आदत है
जिए जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में
पाँव बेहिस है, चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से कितनी सदियों से
जिए जाते हैं, जिए जाते हैं
आदतें भी अजीब होती हैं.