अपनी पिछली की पोस्ट में हमने अपनी बेटी के नये स्कूल का जिक्र किया था आज कुछ और इस अन्कन्वैन्शनल स्कूल के बारे में...
स्कूल का नाम है प्रक्रिया ग्रीन विज़डम स्कूल। यह सरजापुर बैंगलौर में है। शहर के बाहर करीब तीन किलोमीटर कच्ची रोड पर गांव में बसा हुआ है। वैसे तो अब शहर और गांव में कोई अंतर नहीं रह गया है, पर रोड कच्ची होने के कारण अभी ज्यादा बसा हुआ नहीं लगता। पहली नज़र में देखने पर कोई हाई-फाई स्कूल नहीं लगता। पर प्रकृति की छांव में, शहरी प्रदूषण से दूर पूरा कैम्पस मन मोह लेता है।
शायद इसे आधुनिक गुरुकुल कहना ठीक रहेगा। यहां बच्चों की कोई यूनीफारम नहीं है। हल्के आरामदायक कपडों में स्कूल जाना होता है। फील्ड ट्रिप और कुछ खास दिनों के लिये प्रक्रिया टी शर्ट (जो कि पंच तत्वों के रंग हरा, नारंगी, नीला बैंगनी आदि रंगो में होती हैं) पहन कर जाना होता है। क्लास में जाने से पहले जूते मोज़े उतारकर निर्धारित जगह पर रखने होते हैं। क्लास में बच्चे सेमी सर्कल में चटाई पर बैठते हैं और किताबें लकडी की चौकी पर रखते हैं। एक क्लास में बस १७ बच्चे होते हैं। सप्ताह में दो बार कई क्लास साथ मिलकर पढते हैं। इन्हें वर्टिकल क्लास कहा जाता है। क्लास में भाषाएं (इंग्लिश, हिन्दी, कन्नड)पढायी जाती हैं। इन्हें भी रोचक तरीके से पढाया जाता है, रोल प्ले होते हैं जिनमें बच्चे भाग लेते हैं और पढाई उबाऊ न होकर एक मनोरंजन बन जाती है। मैथ की पढाई क्लास में न होकर मैथ लैब में होती है। जहां बीड्स, ऎबाकस जैसे इन्स्ट्रूमैंट्स के साथ खेल-खेल में बच्चे मैथ सीखते हैं।
साइंस,वैल्यू एजूकेशन, जीके आदि के लिये अन्य स्कूलों की तरह यहां पाठ्य पुस्तकें नहीं हैं। ये सब इन्हें प्रकृति की गोद में पंच भूतों (आकाष, जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु) को संदर्भ में रख कर सिखाये जाते हैं। इन्हें थीमैटिक लर्निंग क्लास TLC कहा जाता है। सत्र के पहले दिन बच्चे प्लांटिग करते हैं। और फिर पूरे साल वो अपने पौधों की देखभाल करते हैं। टाइम टेबिल के हिसाब से डांस, पौटरी, पेंटिग, गेम्स आदि के पीरियड होते हैं। समय-समय पर बच्चे नेचर वाक पर जाते हैं। एक क्लास रिस्पांस्बिलिटी की भी होती है, जिसमें सब बच्चे मिल कर काम करते हैं, जैसे चटाई फोल्ड कर के रखना, चौकी जगह पर रखना, किताबें बांटना। बच्चों को सारी किताबें घर नहीं लानी होती, बस जिस विषय में होम्वर्क( ज्यादातर एक विषय या दो) हो वही किताब घर ले जानी होती है। इस तरह बस्ते का कोई बोझ ही नहीं होता।
टिफिन में जंक फूड (मैगी, बर्गर, चाकलेट) ले जाना मना है। टिफिन भी स्टील का होना चाहिये। लो वेस्ट जींस या बहुत फैशनेबल कपडे भी अलाउड नहीं हैं। बर्थडेज़ पर भी स्कूल में चाकलेट, केक या रिटर्न गिफ्ट देना मना है। ये दिन अलग तरह से बच्चों पर खास ध्यान देकर मनाया जाता है। बच्चे अपने दोस्तों को चिक्की या फल बांट सकते हैं, या लायब्रेरी को किताबें भी दे सकते हैं।
प्रोजैक्ट वर्क भी वास्तविक ज़िन्दगी से जुडे और बच्चों द्वारा चुने होते हैं। जैसे पिछले साल मिडिल स्कूल के बच्चों ने स्कूल के पास सूखती जा रही एक झील को बचाने का अभियान किया था, जिसमें वो सफल भी रहे। अपने अध्यापकों के नेतॄत्व में बच्चों ने झील की नाप-जोख की, सरकारी पदाधिकारियों से मिले, और जो भी उन्हें महत्वपूर्ण लगा, किया।
ऎसे ही और भी बहुत सी विशेषताओं के साथ ये स्कूल बच्चों को बहुत ही पसंद आता है। हमारी बेटियों ने ( कांती- 4th, वरम - play group) जब से ये स्कूल ज्वाइन किया है उनकी खुशी का पारावार नहीं है। कांती जो पहले हमेशा स्कूल से आने पर थकी रहती थी, अब हमेंशा चहकती होती है। अपने स्कूल के बारे में बताने को उसके पास इतना कुछ होता है कि उसकी बातें ही नहीं खत्म होतीं। और छोटी वरम को तो रात में भी स्कूल जाना होता है, और उसे प्रिया आंटी और लता आंटी (यहां टीचर को आंटी बुलाते हैं।) ही चाहिये होती हैं।
(इस पोस्ट में हमने काफी इंग्लिश शब्दों का प्रयोग किया है। पता नहीं क्यों शायद यही अब आम बोल चाल की भाषा सी बनती जा रही है। आस-पास भी हिन्दी बोलने वाले इतने कम हैं कि सोंचना पडता है कई शब्दों को हिन्दी में क्या लिखें। इसलिये बस जैसा बन पडा लिख दिया। अगर अच्छी हिन्दी में लिखते तो लिखना शायद टलता ही जाता , तो बस जैसा मन में आया लिखते गये।)
16 comments:
स्कूल के बारे में जानकर वाकई लगा कि किसी गुरुकुल के बारे में पढ़ रहे हैं.उम्दा जानकारी.क्या ऐसा कई स्कूल दिल्ली या उत्तर भारत में है?
यह तो बहुत प्रभावी परिकल्पना (कांसेप्ट) लग रहा है। दूसरे लोग इसकी नकल करें। देश में रटाऊ शिक्षा का सत्यानाश हो।
कांती जो पहले हमेशा स्कूल से आने पर थकी रहती थी, अब हमेंशा चहकती होती है। अपने स्कूल के बारे में बताने को उसके पास इतना कुछ होता है कि उसकी बातें ही नहीं खत्म होतीं। और छोटी वरम को तो रात में भी स्कूल जाना होता है
ऐसे कुछ और स्कूल खुलें तो मासूम बच्चों की सज़ा (सामान्य स्कूल) माफ़ हो!
"बहुत बढ़िया पोस्ट ..सकारात्मक..."
is school ki parikalpana acchi lagi, shukriya jankari dene ke liye.. kaash aise school har shahar har kasbe me ho....
कितना अच्छा स्कूल है और कितनी अच्छी तरह तुमने स्कूल से जुडी हर बात का उल्लेख कर दिया है.
काश इसी तर्ज़ पर भारत के सारे स्कूल खुल जाएँ,और बच्चों को इन जेलनुमा स्कूलों से मुक्ति मिले.
प्रकृति की गोद में बसा ये सुन्दर स्कूल तो बच्चों को पसंद आएगा ही. बेटियों को नए स्कूल में एडजस्ट करने में कोई परेशानी भी नहीं हुई. दोनों के नाम बहुत सुन्दर है...वरम का अर्थ क्या है?
और प्रोफाइल वाली तस्वीर बहुत ख़ूबसूरत है :)
शुक्रिया!
वरम का पूरा नाम वर लक्ष्मी है, घर में प्यार से उसे वरम बुलाते हैं। वरम का अर्थ है वरदान।
संजीव जी! दिल्ली या उत्तर भारत में ऎसा कोई स्कूल होने की हमें कोई जानकारी नहीं है।
दो साल पहले जॉब के चक्कर में मुझे फ़ैमिली दूसरे शहर में शिफ़्ट करनी पड़ी थी, और स्कूल सैशन शुरू हुये दो महीने हुये थे। सातवीं क्लास में आये मेरे बेटे को वो पिछले दो महीने का कोर्स कवर करने में और रुटीन स्टडी के साथ cope-up करने में पूरा साल ही लग गया था।
जैसे स्कूल जा ज़िक्र आपने किया है, ऐसे स्कूलों की संख्या और ज्यादा होनी चाहिये, और अगर अफ़ोर्डेबल हो सकें तो सोने पर सुहागा। किताबी शिक्षा से भी ज्यादा जरूरी है जीवन, प्रकृति आदि को जानना, समझना।
साल भर बाद फ़िर हमें इस सबसे गुजरना है, कोशिश करेंगे कि ऐसा कोई स्कूल तलाश कर सकें।
अच्छी जानकारी मिली आपकी पोस्ट से।
wakai ye to bahut hi achcha school hai...
बहुत अच्छी जानकारी है अब भारत को ऐसे ही स्कूलों की जरूरत है ताकि अपने देश की संस्कृति से परिचित हो सकें। बहुत अच्छे लगे आपके ब्लाग। शुभकामनायें
बहुत सुन्दर लगी ऐसे स्कूल की परिकल्पना। बच्चे खुश हैं पढ़ते हुये यह अपने में बहुत अच्छी बात है।
स्कूल के बारे में जानकर अच्छा लगा। स्कूल के साथ साथ शिक्षा पर आपके विचारी भी पता चले।
sarika ji , school ke bare me pad kar bahut aachchha laga ,me ek school kholane ke bare me soch raha hoo , please aap mujhe guide kare to me yesa hi school khol loo.
sarika ji , school ke bare me pad kar bahut aachchha laga ,me ek school kholane ke bare me soch raha hoo , please aap mujhe guide kare to me yesa hi school khol loo.
बहुत ही बढ़िया स्कूल है सारिका जी .. मेरा बच्चा साढ़े चार साल का है और के जी में है.. वोह स्कूल जाने के रास्ते में बिल्कुल उदास हो जाता है और मुझे यह नोर्मल नहीं लगता... स्कूल सिर्फ बोझ बनते जा रहें हैं. स्कूल सिर्फ धन-कमाओ फैक्ट्री बन गए हैं और टीचर के नाम पर 'इध-उधर-से-अच्छा-टीचर की नौकरी कर लो' वाले टीचर ही दीखते हैं... स्कूल वालों से ज़्यादा कुछ कह नहीं सकते .. सीधा उत्तर मिलता है की - अपने बच्चे को दुसरे स्कूल में ले जाएँ..
ऐसे स्कूल हर जगह हों... यही दुआ है ..
मनोज खत्री
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