लफ़्ज फूलों से झरे
तेरे लबों से;
और मैंने चुन लिया उन्हें,
अपनी हथेलियों के दोनों में.
तहा के रख दिया,
वक्त की पैरहन के साथ.
ताकि जब मन उदास हो,
और तुम बेतरह याद आओ;
तो, फिर से जी सकूं-
उन बेशकीमती लम्हों को,
फिर से सुन सकूं-
तेरी आवाज़ के नग्मों को.
छू सकूं तेरे
छुई-मुई से लव्ज़ों को;
दोहरा सकूं आज की इस
छोटी सी खामोश मुलाकात को,
जब तुमने कहा तो कुछ नहीं था,
पर मेरे मन ने सुन लिया था,
तेरी अनकही बातों को!
9 comments:
बहुत ही भावपूर्ण रचना।
बहुत खूब.........
बहुत बढ़िया रचना है बधाई।
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
ताकि जब मन उदास हो,
और तुम बेतरह याद आओ;
तो, फिर से जी सकूं-
उन बेशकीमती लम्हों को,
फिर से सुन सकूं-
तेरी आवाज़ के नग्मों को.
बहुत प्यारी कृति हैं.. .
मन को भा गई आपकी ये रचना..वाकई..
आप अभी भी इसी दुनिया में विचार रही है... शाम तक इस महफ़िल मैं भी आ जाऊंगा;..
जब तुमने कहा तो कुछ नहीं था,
पर मेरे मन ने सुन लिया था,
तेरी अनकही बातों को!
अति सुंदर, मन मोहक.
bahut sunder kavita
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