पिछले कुछ दिनों से अपने गर्दन और सीधे हांथ के दर्द की वजह से कुछ भी काम करने में असमर्थ थे। मेरी आठ साल की बेटी हर वक्त हमारी मदद को हाज़िर थी। उसी ने कल एक पुरानी डायरी ला कर दी और पूछा ये आपकी है क्या। हमने उसके हांथो से वो पुरानी यादें लेकर उलटना पुलटना शुरु कर दिया। सबसे पहले नज़र अटक गई एक कविता पर जो हमने उसके(कांती) के जन्म के कुछ दिन बाद ही लिखी थी। सोंचा आज वही कविता अपने ब्लाग पर पोस्ट कर देते हैं।
अभी तो बस तुम
मुझमें ही थीं;
मेरे रोम-रोम में बसी
मेरे अंतर में थी।
ये तुमसे अपनी नज़दीकी
कुछ असह सी होते हुये भी
मुझे बहुत प्रिय थी।
तुम मेरे अंदर
हर पल कसमसाती हुई
अपने होने का अहसास दिलाती थी।
मेरा मन तुम्हारे इंतज़ार में
हज़ारों सपने बुनता था।
सपनों के साथ ही;
सपनों जैसे...
कितने ही मोजों और टोपों ने
भी तो आकार लिये थे।
और अब....
दर्द के एक लम्बे सागर को
पार करने के बाद
तुम मेरी बाहों में हो।
कितनी मासूम!
कितनी कोमल!
जैसे नन्हीं सी कोई
कली हो।
कल अपने तोतले बोलों में
तुम मुझे "मां" कहोगी।
"मां" ये छोटा सा शब्द ही तो
मुझे सम्पूर्ण
और परिभाषित करता है।
16 comments:
मां बनने का ये अहसास कितना कोमल और सुखद होता है । सारे कष्ट सारी पीडा बच्चे को देखते ही गायब हो जाती है । सुंदर कविता ।
सुंदर कविता है.
शब्दांजलि, किसी भी साहित्यिक पत्रिका से बेहतर ब्लॉग है. वहां कमेन्ट नहीं हो पा रहा है.
धन्यवाद आशा जी एवं किशोर जी!
शब्दांजलि नाम से हम पहले एक साहित्यिक पत्रिका निकालते थे। फिर घर ग्रहस्थी के झंझटों में वो बंद हो गई। अब फिर से थोडा समय मिला है तो ब्लाग के रूप में ये कोशिश है।
शायद टेम्पलीट की कुछ समस्या की वजह से कमेंट नहीं हो पा रहे थे। अब वह ठीक हो गई है। इस ओर ध्यान दिलाने के लिये धन्यवाद।
idhar aana achcha laga aur bitiya ke satha vaatsalya ras me doobana bhi
बेहतरीन कलम है आपकी..आपकी बलोगलेखन पर पुनर्वापसी पर आपको अनगिन शुभकामनायें...आपकी बिटिया को मेरा शुभाशीष..
बिटिया को ढ़ेरों शुभकामनाएँ।
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क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।
हर माँ की जबान बन गयी है आपकी कविता ...बहुत शुभकामनायें ...!!
हमें अगले पोस्ट का भी इंतज़ार rahega...
बहुत ही सुंदर कविता है, और कांति के साथ तुम्हारी तसवीरें ...................... क्या कहूं ....!!!!!! शब्द नही मिल रहे ।
कविता और तसवीरें दोनों जैसे एक दूसरे में छुपे भावों को आकार देते हुए लगे।
सारिका जी,
प्रसवकाल का अनुभव अंतरतम को छू गया। कांति ने जब पहली बार तुतलाते हुये पुकारा होगा "माँ" शायद वह पल जिन्दगी का सबसे अनमोल पल रहा होगा।
बहुत अच्छी रचना के लिये क्या कहूँ......चलिये आप ही महसूस कीजियेगा।
हाँ, एक बात और मैं यह मानता हुँ जिस प्रकार एक स्त्री माँ बनकर अस्तित्वसंपूर्णता पाती है उसी प्रकार एक पुरूष किसी बेटी का बाप बनकर ही पा सकता है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपका कवितायन पर आने का शुक्रिया वाकई लड़कियाँ तितलियाँ सी होती हैं जीवन में रंग भर देती हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अरे! सारिका आज आपको यहाँ देखकर अति सुखद लगा। छोटी बिटिया अब बड़ी हो गयी?
आपकी पत्रिका अब भी याद है।
शुभकामनाएँ
कितनी बडी सौगात मिल जाती है एक शब्द से ...
पहली बार ब्लॉग परा आया हूँ "मेरी बिटिया" पढ़ी. सजीव चित्रण के लिए बधाई और शुभकामनाएं.
बच्चें होते ही ऐसे हैं लिखने पढने वाला अपनी कलम को रोक नही पाता है कुछ लिखने के लिए। हमने भी बेटी के होने पर एक तुकबंदी की थी, चँद सवालों को ध्यान में रखकर। आपने बहुत ही सुन्दर और प्यारा लिखा है। आपके लेखन ने प्रभावित किया, अब तो आना लगा ही रहेगा।
maa....
is shabd se sabhi parichit hai aur apnejis tarah is anubhuti ko vaykt kiya hai bahut sunder laga..
komal se ahsaaas bhari rachna
is this vatsalya ras?
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