Wednesday, March 22, 2017

फिर एक वादी में हम गए

 थे जर्द फूल खिले हुए

 चल रहे थे दोनों हम 

हाथ में हाथ लिए हुए 

फिर वहीं किसी एक मोड़ पे 

तुम हाथ छोड़ के चल दिये

 मैं खड़ी रही उस मोड़ पे

 तेरे लौटने की आस में 

कि नींद मेरी खुल गयी

 तुम थे यहीं मेरे पास में

 वो एक बुरा बस ख़्वाब था 

मेरे ख़्वाबों की ताबीर तुम

 मेरे पास हो तो गिला है क्या 

मेरी ज़िंदगी एक ख़्वाब से

 कहीं और ज़्यादा हसीन है। 

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