सूरज ने अपनी किरणों की तूलिका को
सुनहरे, नारंगी रंगो में डुबा कर
कुछ ऎसे छुआ कि;
लाज की लाली से अवनि और भी
रुपहली हो गई।
तेरे नाम से जुडा मेरा नाम
कुछ इस तरह कि
हर्फ़ तो थे वही बस
फ़लक और ज़मी की क्षितिज पर
शनासाई हो गई।
बातें जो दिल से निकलीं ...पर ज़ुबां तक न पहुंची ...बस बीच में ही कहीं कलम से होती हुयी पन्नों पर अटक गयीं... यही कुछ है इन अनकही बातों में...
Tuesday, September 08, 2009
Monday, September 07, 2009
वापसी
वक्त कैसे पंख लगा कर तेजी से उड जाता है पता ही नहीं चलता। अपनी पिछली पोस्ट करीब तीन साल पहले लिखी थी। सोंचो तो लगता है जैसे कल ही की बात है।हमारी नन्ही कली (जिसकी वजह से हमने इस ब्लाग से विराम लिया था) ने प्ले स्कूल जाना शुरु कर दिया है और हमें कुछ वक्त अपने लिये मिलना शुरु हो गया है। पिछले कई दिनों से हिन्दी ब्लाग जगत में आये नये (जो अब नये नहीं रहे) लोगों को और पुराने दिग्गजों को पढने में लगे थे। कुछ पढ पाया है और कुछ अभी बाकी है। हिन्दी ब्लाग जगत सच काफ़ी आगे निकल चुका है। प्रतिभा की कहीं कोई कमी नहीं है। इतना कुछ खूबसूरत पढने को मिल रहा है कि बस डूब कर पढने में वक्त कहां चला जाता है पता ही नहीं चलता। कोशिश करेंगे कि अब जुडे रहें यहां से, और साथ ही कुछ नया लिखे भी।
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