Thursday, October 29, 2015

"काँच के शामियाने" (रश्मि रवीजा) मेरी नज़र मे


आज बहुत दिनो बाद इस ब्लाग पर कुछ लिखने बैठे हैं, असल में ये रश्मि दी से और अपने आप से किया वादा था की उनकी लिखी किताब पर हम प्रतिक्रिया ज़रूर लिखेंगे, तो बस आज वक्त निकालकर लिखने बैठ ही गये है| रश्मि दी ने जब अपने ब्लाग "मन का पाख़ी" पर अपनी कहानियाँ लिखना शुरू किया था तो हम उनके पहले पाठकों में से थे, बड़े अधिकार से और कभी ज़िद करके उनसे और कहानियाँ लिखने की गुज़ारिश करते थे| उनसे अपनी किताब प्रकाशित करवाने का आग्रह भी करते थे| और आज जब ये उपन्यास "काँच के .शामियाने" हमारे हांत में है तो ये थोड़ी बहुत अपनी भी उपलब्धि लग रही है| यूँ इस आभासी जगत में ज़्यादा लोगों से मित्रता नहीं है हमारी पर रश्मि दी से कभी ज़्यादा बातें न करके भी एक प्यारा सा रिश्ता है जो हमें उनसे जोड़े रखता है, और आज अपनी दी की किताब प्रकाशित हुई देख कर हमारा गर्वित होना तो बनता है| रश्मि दी के इस पहले उपन्यास के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई! हमारी दुआ है की ऐसी ढेरों किताबे हमें आने वाले समय में पढ़ने को मिलें| आप यूँ ही लिखती रहें और आपकी कलम का जादू यूँ ही चलता रहे|

तो अब आते हैं इस उपन्यास पर| इस उपन्यास का शीर्षक हमें बहुत ही उपयुक्त लगा| शामियाना चाहें कपड़े का हो या काँच का कभी स्थायी नहीं होता| लड़की के जीवन की ही तरह जो बाबुल के घर कहे जाने वाले एक शामियाने से निकलकर एक दूसरे शामियाने, जिसे पति का घर कहा जाता है, में जाती है साथी साथ निभाने वाला मिल जाए तो ये शामियाना एक पक्का स्थायी घर बन जाता है नहीं तो बन जाता है काँच का शामियाना जो ज़िंदगी की धूप को संग्रहित कर और भी मन प्राण दग्ध कर जाता है|
इस उपन्यास का समर्पण भी हमें बहुत ही सुंदर, सटीक और सारगर्भित लगा| यूँ ज़्यादातर लेखक अपनी पुस्तक के समर्पण में दुनियाभर के लोगों के नाम लिख देते है, जो कतई आकर्षित नहीं करता| पर इस उपन्यास का तीन पंक्तियों का समर्पण बहुत ही प्रभावशाली है |:-
उन सभी के नाम ,जिनकी बातें अनसुनी,अनदेखी और अनजानी रह गयीं|

उपन्यास में अध्याय के शीर्षक बहुत ही रचनात्मक और अपने आप में कुछ कहानी सी कहते लगते हैं| हर अध्याय के साथ नायिका जया का बदलता स्वरूप सामने आता है| शादी से पहले एक सामान्य चंचल सी लड़की जया पिता की मृत्यु से एक गंभीर ज़िम्मेदार लड़की में बदल जाती है, जो बिना विवाह किए अपनी माँ की देखभाल करते हुए अपना जीवन बिताना चाहती है|
अगले अध्याय में जया के विवाह के समय समाज के शक्तिशाली खोखले नियमों को वर्णन मिलता है| विवाह से पहले ही जया के ससुराल वालो के इरादों का पता चलने के बाद भी उसका विवाह वहीं होता है|

खैर कहानी के बारे में ज़्यादा न लिखते हुए अब चरित्रों पर आते है| कहानी की नायिका जया एक बहुत ही आम सी लड़की है जो बहुत उँचे सपने नहीं देखती, यथार्थ के धरातल पर रहकर समझौता करने और परिस्थिति को अनुकूल बनाने की वो भरपूर कोशिश करती है| जया के चरित्र को लेखिका ने अपनी कलम से कुछ यूँ बुना है कि उसके सुख दुख पाठक को अपने लगते है| अपने बच्चों के लिए ही जीवन जी रही जया के जीवन में एक एसा मुकाम भी आता है कि वो अपने बच्चों के साथ आत्महत्या का निर्णय ले लेती है|
जया के इस संघर्ष की ही यह कहानी है, जो बार बार आँखों को नम कर जाती है| पाठक की आँखो को भिगो देना ही एक लेखक की सबसे बड़ी सफलता है, और ये रश्मि दी ने बखूबी किया है|
एक और चरित्र जिसने हमें प्रभावित किया वो है जया की दूसरी बहन सीमा | यूँ बहुत छोटा सा रोल है उसका पर वो जया की तकलीफ़ को बिना बताए बस देख कर ही समझ जाती है
और जया के पति राजीव के चरित्र के बारे में तो हम सोचना या लिखना भी नहीं चाहते| वैसे ये भी लेखक की सफलता है की कोई पात्र इतना नापसंद लगे की उसके बारे में कुछ कहना भी नागवार लगे| कहानी इतनी अपनी आसपास की लगती है की लगता ही नहीं की कोई उपन्यास पढ़ रहे है, नायिका के साथ उसके सुख दुख में सुखी दुखी होते जब हम कहानी के सुखद अंत में पहुचते हैं तो यह अहसास भी सुखद लगता है की चलो अंधेरे के बाद रौशनी ने जया की ज़िंदगी में भी दस्तक दे ही दी|

4 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अच्छा लगा पढ़कर , हम भी इस किताब को ही पढ़ रहे हैं :)

Anonymous said...

लम्बे अंतराल के बात ही सही - सुखद अनुभूति

rashmi ravija said...

सारिका , तुम सिर्फ मेरे पहले पाठकों में से ही नहीं हो बल्कि मेरे ब्लॉग की पहली फौलोवर भी हो .उन दिनों तुम्हारी प्रोफाइल पिक्चर पर एक सूर्यमुखी का फूल लगा था .मैंने उत्सुकता वश देखा कौन है ये तो तुम्हारा प्यारा सा नाम दिखा .उस वक्त से तुम अब तक मुझे इतनी रूचि से पढ़ रही हो, ये मेरे लिए एक गर्व का विषय है. और बिलकुल ये किताब तुम्हारी उप्लन्ब्धि भी है क्यूंकि तुमलोगों ने ही प्रकाशित करवाने की बात कहनी शुरू की और मेरी आँखों में ये सपना बोया .
तुम्हें ये उपन्यास पसंद आया ,मेरा लिखना सफल हुआ .तुमने बहुत सुंदर समीक्षा लिखी है . सीमा का बहुत कम जिक्र है पर तुम्हारी पारखी नजर ने उस पात्र की महत्ता पकड ली . तुम्हें कहानी की गहरी समझ है .
छोटी बहन को क्या धन्यवाद कहूँ ,ऐसे ही मेरा हौसला बनी रहो .
तुमलोगों का प्रोत्साहन ही मेरा अपने लेखन पर विश्वास बनाये रखता है .

Unknown said...

अच्छी समीक्षा