Monday, September 20, 2010

...एक अनकही कहानी!



लिखना कभी उसका पैशन हुआ करता था.. कुछ लिखे बिना उसे जीना नहीं आता था, लिखना जैसे की उसके लिए सांस लेना जैसा था. कुछ कविता या नज़्म नहीं तो डायरी या फिर यूँ ही बेलौस बस लिखे जाना उसकी आदत सी थी. अगर वो कुछ पढ़ती भी तो उसकी कलम उसके साथ होती थी. किताब पर वो कुछ नहीं लिखती थी पर उसकी साफ़ शफ्फाक किताबों में रक्खी छोटी छोटी पर्चियों में उसकी समझ के अनुसार वो किताब पढ़ी जा सकती थी. उसके पर्स में हमेशा एक सफ़ेद पन्ना और एक कलम जरुर होती थी. पर अपने लिखे हुए को वो संभाल कर नहीं रखती थी ये भी उसकी सभी अजीब आदतों सी एक आदत थी. अपनी आदतों में बंधी हुई थी, और अपनी आदतों से अलग कुछ करने में वो परेशान हो जाती थी, झुंझला जाती थी. एक बंधे बंधाये रूटीन में उसकी ज़िन्दगी चलती थी. बस इसी तरह जीना उसे आता था.....



 
और फिर एक दिन उसकी ज़िन्दगी ने करवट ली, वक्त की डाली पर एक नयी कोंपल नए मौसम के साथ यूँ उगी की पूरी फिजा ही बदल गयी. मुस्कुराहटों के मौसम छा गए. अब अपनी खुली किताब सी ज़िन्दगी वो छिपाने लगी. उसे लगता की उसके जज्बे कोई उसके चहरे  पर ही न पढ़ ले. और लिखना तो बस यूँ ही बंद हो गया. अब वो पढ़ती भी तो कुछ लिखती नहीं की कोई कुछ अंदाजे न लगा ले. यूँ सबसे सब कुछ छिपा कर रखना भी उसकी आदत सी हो गई..अब वो सपनों में जीती थी, उसके ख़्वाब उसकी अमानत थे..और वो अपने ख़्वाबों की दुनिया की शहजादी थी..अब वो लिखती नहीं थी, अपने शब्दों को खुद जीती थी, वो एक जीती जागती कहानी बन गयी थी....एक अनकही कहानी!

8 comments:

सागर said...

शायद यही वो सारिका सक्सेना है !

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

बहुत सुंदर!

मैंने नोटिस किया है कि आप काफ़ी अच्छी चीजों को पढती हैं.. लिखती तो माशा - अल्ला अच्छा हैं ही..

POOJA... said...

bahut sare pyaar se bhari pyaari si rachna...

rashmi ravija said...

अब वो लिखती नहीं थी, अपने शब्दों को खुद जीती थी, वो एक जीती जागती कहानी बन गयी थी....एक अनकही कहानी!
कमाल का शब्दों का ताना-बना बुना है.....बहुत ही सुन्दर.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर......सारिका :)

Manoj K said...

खूब.. कमाल है... कम शब्दों में काफी कुछ कह दिया सारिका जी ..

मनोज खत्री

Anonymous said...

कितना अच्छा लिखती हैं आप , सच में आँखें भर आती हैं...पढने हुए .मेरे को लगता है ये आप ही है न .........ऐसे ही लिखती रहिये
हमारे ब्लॉग पर भी आये आपका वेलकम है

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

सारिका सक्सेना जी प्यारी कहानी मन को छू लेने वाली बधाई हो

शुक्ल भ्रमर ५
वक्त की डाली पर एक नयी कोंपल नए मौसम के साथ यूँ उगी की पूरी फिजा ही बदल गयी. मुस्कुराहटों के मौसम छा गए. अब अपनी खुली किताब सी ज़िन्दगी वो छिपाने लगी