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Friday, June 03, 2005

कौन हो तुम

अनकही बातें
कौन हो?
कुछ तो कहो तुम!
स्वर्ण हो ?
या हो रजत तुम!
आने से तुम्हारे मन खिला है;
पर कहीं तूफ़ां तो नहीं हो?
बहार हो ?
या हो खिजा तुम!
लगते तो हो प्रातः किरण जैसे;
पर कहीं रात्रि तो नहीं हो?
उषा हो?
या हो निषा तुम!
कहती हैं आंखे कुछ तो तुम्हारी;
पर कहीं ये कुछ वहम न हो,
यथार्त हो?
या हो कल्पना तुम!
हैं कितनी गहरी बातें तुम्हारी,
कितने जाने डूब गये हों;
नदिया हो?
या हो सागर तुम!
साथ तुम्हारा भला लगता है;
पर इस रिश्ते को नाम क्या दूं?
अपने हो?
या हो अजनबी तुम!
--सारिका सक्सेना

4 comments:

  1. sarika ji,
    shabdon ka prayog bahut achha laga. is kavita me arth ki ek laya hai..keep it up

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  2. धन्यवाद तारव जी!
    प्रतिक्रिया पाकर और लिखने का उत्साह दूना हो जाता है।
    सारिका

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  3. Sarikaji,

    Bhavnaon aur shabd ka sangam hi kavita hoti hai par aap to ek kadam aage nikal gayi .great

    Congrets

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  4. Sarika Ji,
    Muzhe aapki kavita acchi lagi ayse hi kavita likhte raho..........

    Thanks

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