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Friday, June 03, 2005

शब्द.....

शब्द.....
क्या हैं आखिर शब्द? अक्षरों से भरी एक उंजलि ही तो हैं,
जो बनते हैं उदगार कितने बेचैन ह्र्दयों का...
कभी गीत का रूप लेते हैं ये शब्द ,कभी नज़्म का।
कभी कहते हैं कोई कथा, कभी बयान करते हैं कोई किस्सा।
कभी मौन होकर ही कह देते हैं किन्ही अनकही बातों को।
उकेर सकते हैं ये शब्द पत्थर की किसी मूरत को...
कभी ये शब्द इन्द्रधनुषी रंग बिखेरते हैंकिसी चित्रकार की तूलिका से।
शब्दों का नहीं है कोई आदि या अन्त ...,
युगों से ये खुद ही हैं पहचान अपनी गवाह हैं इतिहास के!
इन्हीं जादुई अक्षरों से भरी ये उंजलि ...
अर्पित है ये शब्दांजलि!

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