बातें जो दिल से निकलीं ...पर ज़ुबां तक न पहुंची ...बस बीच में ही कहीं कलम से होती हुयी पन्नों पर अटक गयीं... यही कुछ है इन अनकही बातों में...
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Thursday, February 03, 2011
नज्म
तेरी नज़रों के हिसार में
अब हर वक्त
कैद रहती हूँ मैं.
चाहूँ भीं तो बच नहीं सकती
कुछ ऐसे खुद को खो बैठी हूँ मैं.
तेरी रफाकत के इस आलम में
दर्द ही हासिल है बस,
तू नहीं तेरी प्यास से
दिल को लगा बैठी हूँ मैं.
तू नहीं तेरी प्यास से
ReplyDeleteदिल को लगा बैठी हूँ मैं...
बहुत खूबसूरत नज़्म .. दिल में प्यार हो तो अक्सर ऐसे ही होता है ..
waah, pyaari si nazm
ReplyDeleteखूबसूरत
ReplyDeletehttp://shayaridays.blogspot.com
shandaar!!!
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