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Thursday, February 03, 2011

नज्म

तेरी नज़रों के हिसार में
अब हर वक्त
कैद रहती हूँ मैं.
चाहूँ भीं तो बच नहीं सकती
कुछ ऐसे खुद को खो बैठी हूँ मैं.
तेरी रफाकत के इस आलम में
दर्द ही हासिल है बस,
तू नहीं तेरी प्यास से
दिल को लगा बैठी हूँ मैं.

4 comments:

  1. तू नहीं तेरी प्यास से
    दिल को लगा बैठी हूँ मैं...

    बहुत खूबसूरत नज़्म .. दिल में प्यार हो तो अक्सर ऐसे ही होता है ..

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  2. खूबसूरत
    http://shayaridays.blogspot.com

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