कच्ची मिटटी से थे
जो ख़्वाब कल बनाए थे,
चलो आज पका लें उन्हें
अपने हांथो की
गर्मी से, अपनी साँसों की तपिश से
की ख़्वाब हैं ये तो
इन्हें चाहिये बस
हांथों की नरमी और साँसों की नर्मी
नहीं मिला जो इन्हें
तेरी बाहों का सहारा
तो बह जायेंगे आंसुओं के
समंदर में.......
बहुत खूबसूरत ख़याल
ReplyDeleteयहाँ आपका स्वागत है
गुननाम
chalo paka len kisi sapne ko hakikat bana len
ReplyDeleteFriday, December 18, 2009
ReplyDeleteखामोश मुलाकात
लफ़्ज फूलों से झरे
तेरे लबों से;
और मैंने चुन लिया उन्हें,
अपनी हथेलियों के दोनों में.
तहा के रख दिया,
वक्त की पैरहन के साथ.
ताकि जब मन उदास हो,
और तुम बेतरह याद आओ;
तो, फिर से जी सकूं-
उन बेशकीमती लम्हों को,
फिर से सुन सकूं-
तेरी आवाज़ के नग्मों को.
छू सकूं तेरे
छुई-मुई से लव्ज़ों को;
दोहरा सकूं आज की इस
छोटी सी खामोश मुलाकात को,
जब तुमने कहा तो कुछ नहीं था,
पर मेरे मन ने सुन लिया था,
तेरी अनकही बातों को!
yah rachna vatvriksh ke liye bhejiye rasprabha@gmail.com per parichay tasweer aur blog link ke saath
bahut achchi lagi.
ReplyDeleteसारिका जी गहरे जज्बात है इस कविता .... बहुत ही भावपूर्ण बन पड़ी है ये छोटी सी कविता. बधाई
ReplyDeleteफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
रमिया काकी
खूबसूरत भाव!
ReplyDeleteवाह! कितनी सादगी से इतनी गहरी बात कह दी।
ReplyDeleteइन ख्वाबों को पका लें ...
ReplyDeleteहाथों की गर्मी से , सांसों की नर्मी से ...
सुन्दर !
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
bahut achhi rachna der se aapke vlag par aane ki galti meri hi hai ...
ReplyDeletebahut sundar bhavabhivykti...
ReplyDeletebahut badiya hai.....
ReplyDeletebhut achha likhti hae emotionl thoughts 1s time here i have food blog do visit
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