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Wednesday, January 20, 2010

ऋतु राज बसंत

आज बसंत पंच्चमी के दिन सब कुछ खिला निखरा सा लग रहा है। यूं तो बैंगलौर में सभी मौसम सुन्दर बसंत से होते हैं, पर आज के दिन की बात ही कुछ और है। ऋतु राज बसंत का आगमन चारों ओर दिखाई दे रहा है। हर बसंत पर अपने बचपन में लिखी एक कविता याद आ जाती है। आज उसे ही अपने ब्लाग पर पोस्ट कर रहे हैं।

आ गई मधुरिम ऋतु बसंत
लेकर कुछ नई बहारें नये रंग
वातावरण सुरभित हुआ पल्ल्वित फूलों से
भंवरे करने लगे मधुर-मधुर गुंजन

रास्ते करने लगे राही का इंतज़ार
पेड सजाने लगे अपने आप तोरण द्वार
डालियां करने लगीं झुक कर अभिवादन

मन मयूर नाच उठा मनभावन ऋतु में
संग मेरे गा उठे पल्लव और शाखें
चहुं ओर बस गया एक सुंदर मधुबन

सुन कर किसी अनजाने अजनबी की आहट
नहीं रहा अपने आप पर नियंत्रण
कर बैठी अपना सर्वस्व समर्पण

8 comments:

  1. आ गई मधुरिम ऋतु बसंत
    लेकर कुछ नई बहारें नये रंग
    वातावरण सुरभित हुआ पल्ल्वित फूलों से
    भंवरे करने लगे मधुर-मधुर गुंजन
    बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

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  2. आपको भी वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !

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  3. वाह अब फ़िर से रंग जम रहा है। बधाई। शब्दांजलि का क्या हुआ?

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  4. शुक्रिया आप सभी का

    शब्दांजलि नाम से बस एक ब्लाग है अब।
    http://shabdokiunjali.blogspot.com/

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  5. बचपन में लिखी इतनी सुन्दर कविता की प्रस्तुति के लिये आभार ।

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  6. बसंत का सुंदर चित्रण

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  7. बसन्त का सुन्दर इजहार शुक्रिया

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  8. ग्लोबल वार्मिंग से या जाने क्यों,वसंत का महीना अब इतना गन्दा और दुखदायी लगता है की गरम कपडे पहने नहीं जाते और हलके कपड़ों में ठंढ से नानी मरती है. मधुरिम वसंत की कल्पना शायद किसी क्षेत्र विशेष के लिए होगी. आपने अपने शैशव वय में इसका अनुभव लिखा है जो अति सुन्दर और यथार्थपरक है. जवानी को यू ही दीवानी नहीं कहते.
    शाबाश, बधाई और आशीष!!

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