Tuesday, February 08, 2011

तुझको सबकुछ ख़त में लिखना

तुझको सबकुछ ख़त में लिखना
जीस्त जैसे तेरे नाम हो लिखना

आँख नहीं हटती है तुझसे
चाँद समझकर तुझको तकना

हर एक गली जैसे तेरा घर हो
हर इक मोड़ पे ऐसे रुकना

आकर कहीं फिर जा न सको तुम
कभी तो ऐसे खुल के मिलना

तेरी याद के मौसम में फिर
ज़ख्मों का फूलों सा खिलना

अपने हांथों की रेखा में
मेरा भी कभी नाम तो लिखना

Thursday, February 03, 2011

नज्म

तेरी नज़रों के हिसार में
अब हर वक्त
कैद रहती हूँ मैं.
चाहूँ भीं तो बच नहीं सकती
कुछ ऐसे खुद को खो बैठी हूँ मैं.
तेरी रफाकत के इस आलम में
दर्द ही हासिल है बस,
तू नहीं तेरी प्यास से
दिल को लगा बैठी हूँ मैं.