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Tuesday, February 02, 2010

प्रीत के रंग

सुध-बुध अपनी खो बैठूं मैं
कोई ऎसा गीत सुनाओ।
अपना रंग डाल दो मुझ पर,
या फिर रंग में मेरे तुम रंग जाओ।

क्या हुआ जो मैं राधा नहीं हूं,
तुम तो मेरे कान्हा हो।
अपना मुझे बना लो प्रियतम,
या फिर मेरे तुम बन जाओ।

सुख दुख के सब रंग मिले तो
बनी ओढनी जीवन की।
अपने इस संगम का प्रियतम
क्या है भेद तुम्ही समझाओ

तुम हो गुम अपनी दुनिया में,
और मेरी हो दुनिया तुम।
तज कर एक दिन काम सभी तुम,
संग मेरे एक सांझ बिताओ।

रंगो की जब बात चली तो,
क्या गोरा और क्या काला।
रंग लहू का एक है सबके
चाहें किसी भी देश में जाओ।

10 comments:

  1. सुंदर प्रणय निवेदन , अच्छी रचना

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  2. सुख दुःख के सब रंग मिले तो बनी ओढ़नी जीवन की... पूरा गीत ही बहुत सुंदर है.

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  3. रंगो की जब बात चली तो,
    क्या गोरा और क्या काला।
    रंग लहू का एक है सबके
    चाहें किसी भी देश में जाओ।
    बहुत सुन्दर सन्देश । पूरी रचना बहुत अच्छी लगी शुभकामनायें

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  4. यह तो विलयन की बात हो गयी ! बेहतरीन !
    यही तो है सच्चा रंग जाना कि भेद ही न रहे, पहचान खो जाय !
    रचना का आभार ।

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  5. सुख दुख के सब रंग मिले तो
    बनी ओढनी जीवन की।
    ...वाह!

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  6. सुध-बुध अपनी खो बैठूं मैं
    कोई ऎसा गीत सुनाओ।
    अपना रंग डाल दो मुझ पर,
    या मेरे रंग में रंग जाओ।


    पहली बार आपको पढ़ा है , बहुत अच्छी भावाव्यक्ति...शुभकामनायें !

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  7. सुध-बुध अपनी खो बैठूं मैं
    कोई ऎसा गीत सुनाओ।
    अपना रंग डाल दो मुझ पर,
    या मेरे रंग में रंग जाओ।
    बहुत प्यारी पंक्तिया है जो सुंदर भी है भाव से भरी भी

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  8. bade hee pyare samarpan ke bhavo kee sunder abhivykti......

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