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Sunday, December 04, 2005

कुछ हायकू मेरे भी

आजकल हायकू का मौसम सा आया हुआ है। सभी हायकू में अपने आपको अभिव्यक्त कर रहे हैं।
हमारा भी यह पहला प्रयास है हायकू लेखन में;

हुई बावरी
जब तुम मिले तो
खिला है मन

कच्चे धागे से
प्रीत के बन्धन ये
कितने पक्के

छिपे हो कहां
ढूंढू तुम्हें हर सू
अंखिया मीचे

देखूं अब क्या
बस गई मन में
तस्वीर तेरी

तेरी लगन
राधा सी प्रीत मेरी
कान्हा तुम हो

दहके गाल
रंग हुआ चम्पई
एक नज़र

तुम आ जाओ
लगता नहीं दिल
कैसे कहें ये

कहां मिलेगा
धरती अम्बर सा
साथ हमारा

तुमने छुआ
अंखिया झुक गई
छुई मुई सी

मन बसंती
गाने लगा मल्हार
बादल छाये

रतियां सूनी
तुम गये जबसे
दिन बिराना

11 comments:

  1. वाह पहले प्रयास में ही इतने सुंदर हायकू!

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  2. बहुत खूब। आपके हायकू पढ़के अच्‍छा लगा। आपकी रचनाओं में काव्‍य की गहरी समझ प्रदर्शित होती है।

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  3. कोमल अनुभूति लिये ये हायकु बहुत अच्छे लगे

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  4. हमारा उत्साह बढाने के लिये आप सभी का धन्यवाद!
    सारिका

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  5. Sarika,
    As always, this was excellent too.

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  6. हायकू नए
    बहुत खूब कहे
    जारी रहिए

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  7. हायकू नए
    बहुत खूब कहे
    जारी रहिए

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  8. Achha likha hai saarika, kisi din mai bhi try karoonga, aaj ke liye trailor hai -

    khana khaya
    pet bhar gaya
    Achha tha

    (lunch time hai yehi likh sakta hoon) tab tak tum haayku likhti reho.

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  9. pataa nahin kyun.....ye haaykoo hamesha mujhe acchhe hi kyun lagte hain.....is baar bhi acchhe hi lage....kyaa baat hai....!!

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