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Monday, July 11, 2005

कहना है......

कहना है बहुत कुछ उन्हें भी लेकिन,
जाने क्यों इज़हार नहीं करते;
दिल में एक चुभन उन्हें भी है,
पर जाने क्यों अहसाह नहीं करते।

अक्सर आंखों मॆं उनकी,
कुछ सवाल लहराते देखे हैं।
अक्सर बातों में उनकी
कुछ अधूरे प्रश्न से देखे हैं;
बातें हैं दिल में लाखों
पर जाने क्यों बात नहीं करते।

कहते हैं करार उन्हें है,
पर बेकरार से दिखते हैं।
देख कर मेरी आंखे भीगी ,
कुछ बेज़ार से लगते हैं।
है कोई नहीं मेरा उनके सिवा
जाने क्यों स्वीकार नहीं करते।

अंदाज उन्हें है प्यार का मेरे,
फिर क्यूं इम्तहान सा लेते हैं
हर एक खुशी देकर जैसे
कोई अहसान सा कर देते हैं
प्यार उन्हें भी हमसे है
जाने क्यों स्वीकार नहीं करते।

2 comments:

  1. बहुत खूब सरिता जी।

    वैसे एक और फ़र्रूखाबादी (कायमगंज) का नमस्ते स्वीकार कीजिये।

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  2. नमस्ते आशीष जी!
    खुशी हुई आपसे मिलकर, आपका ब्लाग भी देखा।
    शुभकामनायें!
    सारिका

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